सुप्रभात मित्रों।Good morning my dear friends.
08 24 2014
यह घटना कल रात्रि की है। धर्म पत्नी ने कुछ रोटी के टुकड़े खाने के लिए विन्डो ऐसी पर रखते हुए नोटिस किया कबूतर युगल में से अकेले कबूतरी ही है। कबूतर महाराज नदारद हैं।
मैने भी नजर गढ़ा देखा कि वाकई कबूतरी अकेली है।मन में प्रश्न कौधं गया कि कबूतर कहाँ चला गया?
एक विचार बना कि कहीं छोड़ साथ कबूतरी का किसी दूसरी के पास तो नहीं चला गया। अगले ही क्षण इस सभांवना से इन्कार किया पर तसल्ली न मिली। क्योंकि हम लोग इन कबूतर युगल को करीब से जानते हैैं और काफी अरसे से यह हमारी कविता के नायक और नायिका के रूप में हमारे साथ रहे हैं।
अब विचार एक संभावना पर आकर ही केन्द्रित हो गया और अनायास ही इस रूप में फूट पड़ा।
कलम से____
बार बार ख्याल एक सताता है
होगा कल क्या
कुछ समझ नहीं आता है।
सोच कर परेशान बहुत होता हूँ
नहीं रहूँगा एक दिन
मैं जब
क्या करोगी, क्या न करोगी तुम
पहेली सी बन जाती है
प्रश्न खडा बड़ा कर जाती है।
तुम हो
शान्त
निशब्द बनी रहती हो
कुछ नही
कुछ भी नहीं
कहती हो
शायद जानती हो
एक दिन
कोई आएगा
साथ लिए जाएगा
लौट वहाँ से
न कोई ला पाएगा।
अब कहाँ सावित्री
कहाँ वह देव जो वचन निभाएगा
सत्यवान आखिर में
बलिदान हो जाएगा
अपने जीवन के
प्रारब्ध को पहुँच जाएगा।
शाश्वत सच को कौन भला कैसे झुटलाएगा?
(यह फोटो कैमरे से आज प्रातः ही निकाला है। फ्लैश के उपयोग से पक्षी अचानक सकपका सा गया है। कष्ट के लिए क्षमा करना मेरी नायिका।)
//surendrapal singh//
http://spsinghamaur.blogspot.in/ — with आशीष कैलाश तिवारी and Puneet Chowdhary.
08 24 2014
यह घटना कल रात्रि की है। धर्म पत्नी ने कुछ रोटी के टुकड़े खाने के लिए विन्डो ऐसी पर रखते हुए नोटिस किया कबूतर युगल में से अकेले कबूतरी ही है। कबूतर महाराज नदारद हैं।
मैने भी नजर गढ़ा देखा कि वाकई कबूतरी अकेली है।मन में प्रश्न कौधं गया कि कबूतर कहाँ चला गया?
एक विचार बना कि कहीं छोड़ साथ कबूतरी का किसी दूसरी के पास तो नहीं चला गया। अगले ही क्षण इस सभांवना से इन्कार किया पर तसल्ली न मिली। क्योंकि हम लोग इन कबूतर युगल को करीब से जानते हैैं और काफी अरसे से यह हमारी कविता के नायक और नायिका के रूप में हमारे साथ रहे हैं।
अब विचार एक संभावना पर आकर ही केन्द्रित हो गया और अनायास ही इस रूप में फूट पड़ा।
कलम से____
बार बार ख्याल एक सताता है
होगा कल क्या
कुछ समझ नहीं आता है।
सोच कर परेशान बहुत होता हूँ
नहीं रहूँगा एक दिन
मैं जब
क्या करोगी, क्या न करोगी तुम
पहेली सी बन जाती है
प्रश्न खडा बड़ा कर जाती है।
तुम हो
शान्त
निशब्द बनी रहती हो
कुछ नही
कुछ भी नहीं
कहती हो
शायद जानती हो
एक दिन
कोई आएगा
साथ लिए जाएगा
लौट वहाँ से
न कोई ला पाएगा।
अब कहाँ सावित्री
कहाँ वह देव जो वचन निभाएगा
सत्यवान आखिर में
बलिदान हो जाएगा
अपने जीवन के
प्रारब्ध को पहुँच जाएगा।
शाश्वत सच को कौन भला कैसे झुटलाएगा?
(यह फोटो कैमरे से आज प्रातः ही निकाला है। फ्लैश के उपयोग से पक्षी अचानक सकपका सा गया है। कष्ट के लिए क्षमा करना मेरी नायिका।)
//surendrapal singh//
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