कलम से ___
जोर कर रही है फिर से जीने की तमन्ना मेरे दिल में,
जीलूँ या हँसलूँ या नचलूँ करूँ क्या आए न समझ में।
घुघंरू बांध नचना पडता था नहीं है कोई मजबूरी अब जीवन में
खुल के आज नचूँगी हसूँगी न पहनूंगी कुछ भी आज पैरों में।
दौडना भागना सखिओं के साथ बचपन याद बहुत आता है
ऊंट की सवारी रेत पर पैरों के निशान बनाने को मन करता है।
वक्त गुजारूँगी मैं अब मथुरा में जाऊँगी छोड न कभी सपनों में
राधा रानी को सखी बनूँगी रहूंगी दासी बन कन्हाई के चरणों में।
माँगने से खुशी कहां मिलती है दिल खुश हो मागें वगैर मिलती है
सावन का महीना हो या भादों का छाये रहते है कन्हाई दोनों महीनों में।
खुशी इतनी मिली है भूली बैठी हूँ कटती नहीं हैं बैरी रतियां अकेले में
आजाओ कान्हा राधा पुकार रही है खेलेंगें रास मथुरा की गलियों में।
//surendrapal singh//
08 06 2014
http://1945spsingh.blogspot.in/
and
http://spsinghamaur.blogspot.in/ — with Puneet Chowdhary.
जोर कर रही है फिर से जीने की तमन्ना मेरे दिल में,
जीलूँ या हँसलूँ या नचलूँ करूँ क्या आए न समझ में।
घुघंरू बांध नचना पडता था नहीं है कोई मजबूरी अब जीवन में
खुल के आज नचूँगी हसूँगी न पहनूंगी कुछ भी आज पैरों में।
दौडना भागना सखिओं के साथ बचपन याद बहुत आता है
ऊंट की सवारी रेत पर पैरों के निशान बनाने को मन करता है।
वक्त गुजारूँगी मैं अब मथुरा में जाऊँगी छोड न कभी सपनों में
राधा रानी को सखी बनूँगी रहूंगी दासी बन कन्हाई के चरणों में।
माँगने से खुशी कहां मिलती है दिल खुश हो मागें वगैर मिलती है
सावन का महीना हो या भादों का छाये रहते है कन्हाई दोनों महीनों में।
खुशी इतनी मिली है भूली बैठी हूँ कटती नहीं हैं बैरी रतियां अकेले में
आजाओ कान्हा राधा पुकार रही है खेलेंगें रास मथुरा की गलियों में।
//surendrapal singh//
08 06 2014
http://1945spsingh.blogspot.in/
and
http://spsinghamaur.blogspot.in/ — with Puneet Chowdhary.
No comments:
Post a Comment