कलम से____
अंतस को चीर गई
छिपी हुई सी थी जो
हिवडे के किसी कोने
में सुप्त्वस्था में याद
फिर जग गई, अंतस को चीर गई।
सिरहन सी उठती
है जब स्मृति सोई
जग जाती है अंतस
पीर पराई अपनी सी
क्यों लगती है जब
जब जगती उठती
है परेशानी बढ़ती है
याद तेरी फिर, अंतस को चीर गई।
बार बार हम पीछे
हो जाते हैं जहां से
शुरू हुए वहीं फिर
जाते हैं हम अपने
आज में क्यों खुश
नहीं रह पाते हैं
लौट वहीं यादों से
घिर जाते हैं वादों में याद
तेरी फिर आई, अंतस को चीर गई।
घरौंदे यादों के यूँ
न छोडेंगे दिन जो
गुजारे थे परेशान और
अब दुखी करेगें याद
तेरी फिर आ गई, अंतस को चीर गई।
//surendrapal singh//
08 11 2014
http://1945spsingh.blogspot.in/ — with Puneet Chowdhary.
अंतस को चीर गई
छिपी हुई सी थी जो
हिवडे के किसी कोने
में सुप्त्वस्था में याद
फिर जग गई, अंतस को चीर गई।
सिरहन सी उठती
है जब स्मृति सोई
जग जाती है अंतस
पीर पराई अपनी सी
क्यों लगती है जब
जब जगती उठती
है परेशानी बढ़ती है
याद तेरी फिर, अंतस को चीर गई।
बार बार हम पीछे
हो जाते हैं जहां से
शुरू हुए वहीं फिर
जाते हैं हम अपने
आज में क्यों खुश
नहीं रह पाते हैं
लौट वहीं यादों से
घिर जाते हैं वादों में याद
तेरी फिर आई, अंतस को चीर गई।
घरौंदे यादों के यूँ
न छोडेंगे दिन जो
गुजारे थे परेशान और
अब दुखी करेगें याद
तेरी फिर आ गई, अंतस को चीर गई।
//surendrapal singh//
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