Monday, August 4, 2014

क्यों ले आए हो मुझे मुर्दों के शहर में

कलम से____

क्यों ले आए हो मुझे मुर्दों के शहर में
इनसां नजर मुझे अभी तक आए नहीं हैं।

कैसे तबीयत लगेगी किसी की यहाँ
दर्द बांटने को कोई आता नहीं यहाँ।

रौशनी भी बनी है परेशानी की सबब यहाँ
अधेंरे बहुत हैं अधिक रोशनी तलाशते यहाँ।

किरण आशा की बस एक नजर आती है
पास आकर पूछता है कोई आप कैसे हैं यहाँ।

//surendrapalsingh//
08 04 2014

http://1945spsingh.blogspot.in/

and

http://spsinghamaur.blogspot.in/
Photo: कलम से____

क्यों ले आए हो मुझे मुर्दों के शहर में
इनसां नजर मुझे अभी तक आए नहीं हैं।

कैसे तबीयत लगेगी किसी की यहाँ
दर्द बांटने को कोई आता नहीं यहाँ।

रौशनी भी बनी है परेशानी की सबब यहाँ
अधेंरे बहुत हैं अधिक रोशनी तलाशते यहाँ।

किरण आशा की बस एक नजर आती है
पास आकर पूछता है कोई आप कैसे हैं यहाँ।

//surendrapalsingh//
08 04 2014

 http://1945spsingh.blogspot.in/

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http://spsinghamaur.blogspot.in/
  • Ram Saran Singh " आप कैसे हैं यहाँ" पूछने वाले कम होते जा रहे हैं क्योंकि इंसान अब हद से ज़्यादा मशरूफ हो गया है । लेकिन जो पूछने वाले हैं भी ख़ुदा उनको सलामत रखें । बढ़िया ।
    20 hours ago · Unlike · 4
  • Rajan Varma ये मुर्दों का शहर है- आपके बाजू वाले फ़्लैट में कौन रहता है, कौन आ रहा है, कौन जा रहा है, अंदर कौन मार-पीट, लूट-पाट कर रहा है कुछ संज्ञान में नहीं आता- 'कैसे तबियत लगेगी किसी की यहाँ'? 
    इस भागम-भाग की प्रतिस्पर्धा में फ़ुरसत किसे है किसी की मिज़ाज-पुर्सी में- 'कैसे हैं आप' इतना हौ पूछ लिया शिष्टाचार-वश्- तो उसी में संतोष रखना होगा- ये 'आशा की किरण है मुर्दे में संवेदन-शीलता की'- पता नहीं- no comments
    19 hours ago · Unlike · 4
  • S.p. Singh दोनों महानुभावों का हार्दिक धन्यवाद एवं स्वागत करते हैं।
    मौलिक विचारों की अभिव्यक्ति की है।
    19 hours ago · Like · 2
  • Harihar Singh हाल जानने को सब आतुर खुद ही पर्दा गिरा रखे।
    दोष न दो तुम औरों के खुद ही चश्मा चढा रखे ।
    जब अपनों से दूर रहे और गैरो को उठा रहे।
    कैसे मौज मिले दरिया की ।जब शबनम से ही नहा रहे
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  • S.p. Singh बहुत सुंदर हरिहर भाई।
    कुछ दूरियाँ खुद ब खुद बढ जाती हैं कुछ हम बढा लेते हैं। किसको दोष दें किसको वाह वाह कहें बडा मुश्किल है।
    19 hours ago · Like · 3
  • Suresh Chadha Sir ji apne sahi fermaya
    Aj kal ke samey mae kisko doshi kaha jai bahut he muskil hae
    See Translation
  • S.p. Singh Suresh Chadha : एक शेर गजल का और भी जो नजर में आपके पडा नहीं।

    " रौशनी भी बनी है परेशानी की सबब यहाँ
    अधेंरे बहुत हैं अधिक रोशनी तलाशते है यहाँ।"

    इस पर गौर फरमाइए जरा तो कोई बात बने।
    19 hours ago · Edited · Like · 1
  • S.p. Singh यह कमेन्ट कहीं और जगह के लिए था मुनासिव गलती से यहां चिपक गया। पाडेंजी यह शायद आपने दूसरी पोस्ट के लिए लिखा है जो यहां चिपक गया है। कोई बात नहीं वह पोस्ट भी हमारी है जिसमे पूछा है कि Why you love India?
  • Suresh Chadha Bhai waha ....mera bharat he acha hae jaha sab kuch hae adhar prem satkar isiley.mera bharat mahan
    Jai bharat
    See Translation
  • BN Pandey AAPNE SAHI LIKHAA HAI. YEH GALTI HUI HAI.........ESE MAI YAHA SE DELET KARATAA HU
  • S.p. Singh नहीं रहने दीजिए।
  • BN Pandey AB TO HO GAYA SIR
    18 hours ago · Unlike · 1
  • S.p. Singh चलिए वहां चिपका दीजिए जहां इसकी जरूरत है।
  • BN Pandey SIR MAINE COPY NAHI KIYAA THA .
    18 hours ago · Unlike · 1
  • S.p. Singh ओहो।
  • Sp Tripathi महानगरों में ज़िन्दगी के मायने निरन्तर गिरते जा रहे है । फिर भी आश्चर्य की बात है कि महानगर बढ़ते जा रहे है ।See Translation
    17 hours ago · Unlike · 2
  • S.p. Singh बहुत सुंदर।
  • Kalpana Chaturvedi पूज्य मुरारी बापू की गायी हुई एक पंक्ति याद आयी -
    यह प्यासों का प्रेमनगर है
    यहाँ संभल कर 
    आना जी।
    जो भी आए यहाँ पर
    हो जाए दीवाना जी।।
    13 hours ago · Unlike · 2
  • Ajeet Pandey कडवा सच है, बहुत ही सही लिखा है आपनेSee Translation
    11 hours ago · Unlike · 1
  • Ishwar Dass very good sir
    11 hours ago · Unlike · 1
  • SN Gupta वाह वाह बहुत खूब
  • S.p. Singh आप सभी का आशीर्वाद रचना को मिला। बहुत बहुत धन्यवाद।

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