कलम से____
चल आज तुझे
मैं घुमाने ले चलूँ
उगंली पकड़ कर ले चलूँ
आखिर माँ हूँ, मैं तेरी।
धूप सुहाती है
पंख तू खोल ले
सीने में साँस भर ले
आज नभ तू छू ले।
लक्ष्य देख ले
हासिल क्या करना है
उतनी लंबी उड़ान तू भर ले।
नभ मंडल विशाल है
राह भूलना तुझे नहीं है
आधिंया चलेंगी बहुत तेज
रास्ते में मुश्किलें आएगीं अनेक
मंजिल पर पहुंच कर भी रुकना नहीं है
लौट आना है वहाँ, जहां से तू ने उड़ान भरी है।
उगंली पकड़ कर ले चलूँ
आखिर माँ हूँ, मैं तेरी।
//surendrapal singh//
http://spsinghamaur.blogspot.in/ — with Puneet Chowdhary.
चल आज तुझे
मैं घुमाने ले चलूँ
उगंली पकड़ कर ले चलूँ
आखिर माँ हूँ, मैं तेरी।
धूप सुहाती है
पंख तू खोल ले
सीने में साँस भर ले
आज नभ तू छू ले।
लक्ष्य देख ले
हासिल क्या करना है
उतनी लंबी उड़ान तू भर ले।
नभ मंडल विशाल है
राह भूलना तुझे नहीं है
आधिंया चलेंगी बहुत तेज
रास्ते में मुश्किलें आएगीं अनेक
मंजिल पर पहुंच कर भी रुकना नहीं है
लौट आना है वहाँ, जहां से तू ने उड़ान भरी है।
उगंली पकड़ कर ले चलूँ
आखिर माँ हूँ, मैं तेरी।
//surendrapal singh//
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