कलम से____
शहर आए थे जिन्दगी बसर के लिए
पता ही न लगा और हम यहाँ लुट गए।
निगाह हम पर किसी की पड गई
पहली ही नजर में वो मुझे भा गई।
मिलने मिलाने का सिलसिला चल पडा
कभी वो कभी मैं उनसे मिलने लगा।
देखते ही देखते अच्छा वक्त गुजर गया
हमने उन्हें और उन्होंने हमें समझ लिया।
एक दोनों ने मिल कर तय यह किया।
अच्छे से निभ जाएगी निकाह गर किया।
फिर क्या था आनन फानन में बात घर में हुई
थोडी सी जिरह के बाद रजामंदी हो गई।
आज हम दोनों अमन चैन से रह रहे हैं
याद आ जाए जब कभी बेगम से मैं कहता हूँ:-
"शहर आए थे जिन्दगी बसर के लिए
पता ही न लगा और हम यहाँ लुट गए।"
जो भी हुआ अच्छा हुआ
जो होगा वह भी ठीक होगा।
//surendrapal singh//
http://spsinghamaur.blogspot.in/ — with Puneet Chowdhary.
शहर आए थे जिन्दगी बसर के लिए
पता ही न लगा और हम यहाँ लुट गए।
निगाह हम पर किसी की पड गई
पहली ही नजर में वो मुझे भा गई।
मिलने मिलाने का सिलसिला चल पडा
कभी वो कभी मैं उनसे मिलने लगा।
देखते ही देखते अच्छा वक्त गुजर गया
हमने उन्हें और उन्होंने हमें समझ लिया।
एक दोनों ने मिल कर तय यह किया।
अच्छे से निभ जाएगी निकाह गर किया।
फिर क्या था आनन फानन में बात घर में हुई
थोडी सी जिरह के बाद रजामंदी हो गई।
आज हम दोनों अमन चैन से रह रहे हैं
याद आ जाए जब कभी बेगम से मैं कहता हूँ:-
"शहर आए थे जिन्दगी बसर के लिए
पता ही न लगा और हम यहाँ लुट गए।"
जो भी हुआ अच्छा हुआ
जो होगा वह भी ठीक होगा।
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