कलम से____
ईद के चाँद हुइ गइल हो कंहा रहत हो भाई?
का हो गुलरी के फूल हो गईल हउवा?
हाल यार का पूछने का अन्दाज गजब है
दिल मेरा लुट गया है मिला बडा सुकून है।
मासूमियत टपकती है अदांजे वयां में
मिलेगा प्यार इतना कहाँ इस जहां में।
कुरबान हूँ मैं तुम्हारी इन अदाओं पर
मिलेगा चैन नहीं कहाँ तुम्हें छोड कर।
हमरे बप्पा, हमरे कक्का यहीं दफन हैं
हम न जाइब अपनी धरती छोड कर।
मंजूर है मरना यहाँ, दफ्न हो जाएगें यहीं
जाएगें और कहीं न, हमारा वतन है यही।
//surendrapalsingh//
08 13 2010
http://spsinghamaur.blogspot.in/ — with Rajan Varma and Ram Saran Singh.
ईद के चाँद हुइ गइल हो कंहा रहत हो भाई?
का हो गुलरी के फूल हो गईल हउवा?
हाल यार का पूछने का अन्दाज गजब है
दिल मेरा लुट गया है मिला बडा सुकून है।
मासूमियत टपकती है अदांजे वयां में
मिलेगा प्यार इतना कहाँ इस जहां में।
कुरबान हूँ मैं तुम्हारी इन अदाओं पर
मिलेगा चैन नहीं कहाँ तुम्हें छोड कर।
हमरे बप्पा, हमरे कक्का यहीं दफन हैं
हम न जाइब अपनी धरती छोड कर।
मंजूर है मरना यहाँ, दफ्न हो जाएगें यहीं
जाएगें और कहीं न, हमारा वतन है यही।
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