Monday, August 4, 2014

बडे दरख्त तले गुजारी थी जिन्दगी करते थे दिन रात हम उसकी बन्दगी।

कलमसे____

बडे दरख्त तले गुजारी थी जिन्दगी
करते थे दिन रात हम उसकी बन्दगी।

सिर उठाके कभी कोशिश भी करी
समझा दिया लंबी पडी है जिन्दगी।

चल न सको जब तलक अपने बल बूते
अच्छा यही है रहो मातहत किसी के।

सिर कुचलने को दुश्मन तैयार बैठे हैं
रहना पडेगा तुम्हें संभलके उनसे बचके।

जमाने में मिलेंगे इन्सान हर तरह के
सिला देगें कुछ चैन पाएगें बदनाम करके।

मेरे प्यारे बने तुम रहना आचंल की छांव तले
माँ साथ है तेरे कुछ न होगा कोई चाहे कुछ भी करले।

//surendrapal singh//
08 03 2014

http://1945spsingh.blogspot.in/

and

http://spsinghamaur.blogspot.in/
 — with Puneet Chowdhary.
Photo: कलमसे____

बडे दरख्त तले गुजारी थी जिन्दगी
करते थे दिन रात हम उसकी बन्दगी।

सिर उठाके कभी कोशिश भी करी
समझा दिया लंबी पडी है जिन्दगी।

चल न सको जब तलक अपने बल बूते
अच्छा यही है रहो मातहत किसी के।

सिर कुचलने को दुश्मन तैयार बैठे हैं
रहना पडेगा तुम्हें संभलके उनसे बचके।

जमाने में मिलेंगे इन्सान हर तरह के
सिला देगें कुछ चैन पाएगें बदनाम करके।

मेरे प्यारे बने तुम रहना आचंल की छांव तले
माँ साथ है तेरे कुछ न होगा कोई चाहे कुछ भी करले।

//surendrapal singh//
08 03 2014

 http://1945spsingh.blogspot.in/

and

http://spsinghamaur.blogspot.in/
  • Anjani Srivastava "माँ".. साथ है तेरे, कुछ न होगा कोई चाहे कुछ भी करले... सच्चे मन से ! बेहद ही सुंदर सर जी..See Translation
  • Rajan Varma सर आपकी रचना बड़े पेड़ की छाया में चलने का मशविरा देती है- जब तक चल न सकें अपने बल-बूते; पर बात वही है जब तलक पेड़ की छाया छोड़ेंगे नही चलना सीखेंगे नही; its a chicken and egg story- which came first? अत: माँ का आँचल तो छोड़ना ही होगा- आशीर्वाद ले कर आगे बढ़ना होगा- फ़तेहयाब मुंतज़िर है कर्मठ हौंसलों की
  • S.p. Singh राजन जी,

    हम लोग भावनाओं में बह जाते हैं। हमारे एक मित्र कवि हैं और फेसबुक के दोस्त भी। हाल में ही ऊनके पिताश्री का 92 years की उम्र में अचानक देहावसान हो गया है। वह अब अकेला पन महसूस करने लगे हैं।
    यह कविता बस अनायास ही उनके लिए निकल पडी।
    माँ का आचंल तो माँ का ही होता है।
  • BN Pandey RISHTO KA ITIHAAS HAI RISHTO KAA BHUGOL. SAMBANDHO KE JOR KAA MAA HAI FEVICOL
  • S.p. Singh बहुत सुंदर पाडें जी।
  • S.p. Singh डा रूप चन्द्र शास्त्री मयंक : यह कविता सर आपके लिए विशेष रूप से लिखी है। आपकी पूज्य माताजी का आशीर्वाद आप पर बना रहे यही प्रभु से प्रार्थना है।
  • SN Gupta वाह वाह बहुत खूब सिंह साहब
    7 hours ago · Unlike · 1
  • S.p. Singh धन्यवाद SN Sir जी।
  • Puneet Chowdhary Sir beautiful lines.Akbar told his dying mother tumhare baad humein akbaroo kon kahega.na kisi mein jazbaat honge or na hi himmat shayat
    7 hours ago · Unlike · 1
  • S.p. Singh Thank you so very much for telling a piece from great Indian history about affection of mother for his only son.

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