Tuesday, January 6, 2015

छोड दूँगी सब नाच गाना

कलम से____
छोड दूँगी सब
नाच गाना
देगा अगर तू
कोई उल्हाना
सौतन के पास
भूल कर भी न जाना
समझा क्या है
कट जाएगी
एक म्यान में
तलवार एक ही
रह पाएगी
नहीं हूँ मैं
कोई ऐसी वैसी
नौच लूँगी मुहँ
उसको जो
डालेगा बुरी नज़र
तुझपे
देखूँ तो तड़प
उसकी भी जरा मैं भी
चाहती है कितना
तुझे वो.....
शहर में चलता होगा
होता होगा यह
रोज तमाशा
हरजाई भी होंगे बहुत से
मरु में न चलेगा
कुछ भी ऐसा
मेरा है तू बस
मेरा ही रहेगा !!!
आ चल चलें
नाचें गायें
इक दूजे के लिए
बने हैं
इस मरु में ही खो जायें....
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
— with Puneet Chowdhary.
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  • Ram Saran Singh बहुत सही, उलाहना, मीठी तकरार के बाद नाचने गाने का इसरार । आख़िर यही तो जीवन है । धन्यवाद । महोदय ।
    15 hrs · Unlike · 1
  • S.p. Singh Singh saheb it was penned during our stay at a desert camp where we watched some cultural programme in the evening. I always get fascinated with lifestyle of people of Thar desert.
    15 hrs · Like
  • Ram Saran Singh Nice. Sir thanks.
    15 hrs · Unlike · 1
  • Rajan Varma शहर, देहात अौर मरू के कायदे-कानून हैं अपने-अपने,
    जहाँ सौत को कुछ समाज में कानूनी मान्यता है;
    वहीं बाकी तबकों में अनकहा परिचलन है,
    अौरत सदियों से दबती आई है- बस अब अौर नहीं!!!
    15 hrs · Unlike · 1
  • S.p. Singh देखा वर्मा जी ने कविता के किस भीतरी बात को पकड़ कर उजागर किया है।

    बहुत बहुत धन्यवाद राजन।
    15 hrs · Like · 1
  • SN Gupta वाह,अति सुन्दर
    14 hrs · Unlike · 1
  • आकांक्षा रॉय वाह वाह वाह.... बहुत खूब...
    9 hrs · Unlike · 1
  • Dinesh Singh अति सुन्दर मान्यवर
    1 hr · Unlike · 1

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