Sunday, January 18, 2015

नव अंगों का शाश्वत मधुर वैभव लुटाती हो।

कलम से____
तुम जब जब आती हो,
नव अंगों का
शाश्वत मधुर वैभव लुटाती हो।
निशब्द पर करते नूपुर छम छम,
श्वासों का थमता स्पंदन-क्रम,
जब जब तुम आती हो
मन भीतर
अग्नि प्रज्वलित कर जाती हो।
ठगे ठगे से रह जाते मनोनयन
कह न पाते चलता रहता जो अंतर्मन,
जब जब तुम आती हो,
सोये से मन के
स्वप्नों के फूल खिला जाती हो।
अभिमान अश्रु बन बहता झर झर
अवसाद मुखर रस निर्झर,
जब जब तुम आती हो,
हिम शिखर
पिघला ज्वार उठा जाती हो।
स्वर्णिम प्रकाश में हो पुलकित
स्वर्गिक प्रीत का बन द्योतक
जब जब तुम आती हो,
जीवन-पथ पर
सौंदर्य-रस बरसाती हो।
जागृत हुआ वन में मर्मर,
कंप उठतीं हैं अवरुध्द श्वास थर थर,
जब जब तुम आती हो,
उर तंत्री में
स्वर व्यथा के भर जाती हो।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
— with Puneet Chowdhary.
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