Monday, January 26, 2015

पढ़ने को बहुत कुछ मिल जाता है रामायण अब घर में नहीं मिलती।

कलम से____
गर्दिश ही गर्दिश है चहुँओर छाई हुई
पेडों से भरी अमराई नहीं मिलती।
पढ़ने को बहुत कुछ मिल जाता है
रामायण अब घर में नहीं मिलती।
फर्क कोई नज़र नहीं आता है
हर रोज़ कोई चला जाता है।
बुजुर्गों की ज़रूरत वैसे नहीं पड़ती
शादी ब्याह में ज़रूरत मगर है दिखती।
पूछ लेता है जब कोई गोत्र का नाम
सीधे मुँह आवाज़ नहीं निकलती।
गाँव पता पुरखों को सब भूल बैठे हैं
पत्थरों पर नाम लिखे नहीं मिलते हैं।
चंद मुहरों की तलाश में खुदवा दी हवेली
पत्थरों पर ढूढंने से अब दूब नहीं दिखती।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
— with Puneet Chowdhary.
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  • Ram Saran Singh " पढ़ने को बहुत कुछ मिल जाता है, रामायण अब घर में नहीं मिलती " बड़ी ही चिंता का विषय है यह । नई पीढ़ी के प्रतिमान बदल गए हैं । नई पीढ़ी सुखवाद में यक़ीन करने लगी है । परंतु कमी कहीं हममें भी है । यह अति बौद्धिकता का और भोगवादी पाश्चात्य दर्शन का प्रभाव है । जहाँ तक बुज़ुर्गों की उपयोगिता का सवाल है, तो वह अपनी जगह ठीक है । परंतु बुज़ुर्गों को स्वयं भी सत्ता पर पकड़ कमज़ोर करनी चाहिए और नई पीढ़ी को ख़ुद सोचने का मौक़ा देना चाहिए । नई पीढ़ी की जीवन शैली में दख़ल से बचना बेहतरी है । ये मेरे विचार हैं । धन्यवाद ।
  • Puneet Chowdhary Marm sparshi
  • Rajan Varma पढ़ने का चलन तो ख़ैर वैसे भी ख़त्म-सा ही हो चला है-thanks to internet/google/wikipedia- तो रामायण के किरदारों की भी कदाचित् सारी जानकारी नैट से ही ले लेते होेगें; पर इस बात पर कोई दो राय नहीं हो सकतीं कि जो आनन्द रामायण की चौपाइयाँ पढ़ने में आया करता था बचपन में- अौर वोह हर थोड़ी देर बाद कोरस- 'मँगल भवन अमँगल हारी, द्रवहू सुदश्रथ अचल बिहारी' में बोलना- वैसा आनन्द तो शायद गूगल बाबा नहीं दे पायेंगे; 
    जहाँ तक गोत्र इत्यादि की बात है- शहरों में तो लोग अब धीरे-धीरे इससे दूर हो चले हैं- देहात् में अभी भी इन चीज़ों की काफ़ी अहमियत् है;
  • S.p. Singh हमारी पीढ़ी ने तो यह मान ही लिया है कि विरासत के नाम पर कुछ बचने वाला नहीं है जो हम आगे के लिए छोड़ जाएगें। दूध, दही, रवढी इत्यादि कल बात लगतीं हैं। चिलगोजे, काजू, बादाम फेसियल प्रोडक्ट बनाने वाले चाट जाएंगे। जंगल, इंडस्ट्री और इनफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की भेंट चढ़ जाएंगे। हवा पानी कैमिकल इंडस्ट्री खा जाएंगीं क्या देकर जाएंगे अगली पीढ़ी को ? इसलिए अब हम लोग वैसे भी कुछ नहीं कह सकते, चुप रहना ही बेहतर।
    धन्यवाद।
  • Puneet Chowdhary Bahut hi vyvahrik visleshan
  • S.p. Singh अगर हम इस कविता की आत्मा में झांके तो पाएंगे कि आज यह सारी समस्याएं भारत के मानस की हैं, किसी एक व्यक्ति की नहीँ।
    धन्यवाद आपने इसे आशीर्वाद दिया।
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