Sunday, January 25, 2015

शिकोहाबाद रेलवे स्टेशन

कलम से_____
हम लोग, जो छोटे शहरों से आये हैं, उन्होंने जीवन के विभिन्न रंग देखे हैं, जिसमें भारतीय रेलों ने भी बहुत अहम रोल निभाया है। हम लोगों का घर भी एक छोटे से रेलवे स्टेशन शिकोहाबाद जंक्शन के पास ही था। स्कूल आना जाना रेलवे प्लेटफार्म से ही हुआ करता था। आज की यह कविता बचपन के इन्टरमीडिएट तक साथ पढ़े मित्र योगेन्द्र कुमार भटनागर के और उन दिनों की यादों के नाम........
रेल 
भारतीय रेल की
रफ्तार अचानक
बढ़ है गई
बाहरी दुनियाँ की
हवा इसे भी
लग गई
फटी फटी आँखों से
निहारा करते थे
वो भाप वाले इंजन
को शंटिग करते
कभी कुछ डिब्बों के साथ
आगे और कभी पीछे
चलते हुए
कितना अपना सा लगता था
वह प्लेटफार्म
हर रोज़ स्कूल जाते वक्त
स्टील गर्डर का बना पुल
टिकट घर के बगल से
गुज़रते हुये ज्योती हलवाई की
जलेबी की दुकान
सुरेश की पान की दुकान
ललुआ के इक्के में
दुअन्नी में शहर के चौराहे
तक की सवारी
फिर स्कूल
और
फिर वही लौटने का सफर
कभी कभी
गार्ड की केबिन में बैठकर
घर तक का सफर
एक हाथ बस्ते पर
दूसरा उसके हाथ पर
वही गीत जुबां पर
जीत ही लेंगें बाज़ी हम तुम
खेल अधूरा छूटे ना
यह प्यार का बंधन
जन्म का बंधन टूटे ना.......
शोला शबनम का
शोला अल्हड़ प्रेम का
दिल में धड़कता जो था
उस चंचल शोख सी
लड़की की आँखों में
दुनियाँ अपनी सी दिखती थी.....
अब सुपर फास्ट
बुलेट ट्रेन .....
.............सब पीछे छूट गया
Today incidently is also birthday of industrialist Kamalnayan Bajaj ji (23-01-1915).
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
— with Yogendra Bhatnagar and Puneet Chowdhary.
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