Monday, January 12, 2015

आग जो तुम्हारे भीतर लगी उठता हुआ धुआँ, धुआँ

कलम से____
आँखों को याद दिला गया
आग जो तुम्हारे भीतर लगी
उठता हुआ धुआँ, धुआँ
भीतर ही भीतर कुठिंत मन
विद्रोह पनपता हुआ
कभी निशाने पर था
दोस्त
कभी निशाने पर
समाज
कभी निशाने पर
इन्सान
कभी निशाने पर
इन्सानियत
कुछ वक्त और गुज़र जाता
सभंलने का मौका मिल जाता
वो न होता जो हो गया
मैं खुद को भूल गया
उन्माद में
गलत बहुत कुछ हो गया
न खुदा ही मिला
और न रही जिन्दगी
धुआँ धुआँ जिसकी वजह हुआ
बस सब धुआँ धुआँ हो गया......
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
— with Puneet Chowdhary.
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  • Ram Saran Singh बहुत सुंदर विचार आदरणीय । मैं कह सकता हूँ कि फ्रंास की घटना ने आपको उद्वेलित किया है और संवेदनशील मन का प्रभावित होना स्वाभाविक है ।
  • S.p. Singh धन्यवाद सिंह साहब घुटन महसूस हो रही थी।
  • Rajan Varma आज के पेपर में पढ़ रहा था- बोको हरम ने नाइजीरिया में २०,००० से अधिक लोग मार दिये; स्टेट अॉथारिटीज़ ने शवों की गिनती बंद कर दी है- इतने ज़्यादा लाशें बिछा दी हैं शेतानों ने;
    प्रश्न ये उठता है कि ये mass murders पिछले दो दश्कों से इतने आम क्यों हो गये हैं? 
    क्या आटोमैटिक राइफ़्लें सब्ज़ी मँडी में मिलनी शुरू हो गई हैं?? 
    या धर्माँध्ता का जुनूँन हर नुकड़ पर तक़सीम होने लग गया है जिसे समय रहते इन कुर्सी-के-भूखे नेताअों ने आँख मूँद कर ignore करने में ही अपना भला समझा??
    कारण कोई भी हो- हैं हमारी अपनी ही गल्तियाँ; चाहे वोह सब्ज़ी-से-सस्ती बन्दूक का उत्पादन हो थोक में या फ़िर हर नुक्कड़ पर चल रहे mass-suicidal bombers की पौध रोपने के स्कूल हों- जिनको हमने बे-लगाम बढ़ने दिया- का ही ये नतीजा है जो आज हम प्रत्यक्ष देख रहे हैं-
  • S.p. Singh मेरी एक व्यक्ति,से जो कि खास एक धर्म से था, बात हो रही थी। मैंने भरसक प्रयास किया कि यह समझा पाऊँ कि यह ब्रम्हांड धीरे धीरे बना और इन्सान भी धीरे धीरे इस दौर तक पहुँचा है। यहाँ न खुदा था, न भगवान, न जीसू, न और कोई धर्म। पहले इन्सान ही था। यह मजहबी तूफान तो बाद में शुरू हुआ और पूरी मानवता आज उसकी भेंट चढ़ रही है। इन्सान क्यों बंटा बंटा सा महसूस कर रहा है।पर मेरे लाख समझाने से भी उसकी समझ में मेरी बात नहीँ आ रही थीं। कहने का मतलब है कि धर्म इतने तरीके से सिर पर चढ़ कर बोल रहा है। यह धार्मिक उन्माद न जाने कहाँ ले जाएगा अपनी इस दुनियां को। कुछ नेता खराब कर रहे हैं और कुछ अपने अपने धर्म की अंधी सोच।
  • Rajan Varma सर इसी को तो हम कंडिश्निंग अॉफ़ मांइड कहते हैं- कि हमारे दिलो-दिमाग पर एक ही बात को बार-बार, बार-बार दोहराई जाये तो फ़िर दिमाग-का-ढक्कन बंद हो जाता है अौर किसी अौर विचार के अंदर घुसने की सभी संभावनाऐं समाप्त हो जाती हैं- 
    इसी मनो-वैज्ञानिक तथ्य को पहचानते हुये ही तो इन शातिर धर्मांध उल्लेमाअों ने तीन-चार साल के अबोध शिशुअों की पौध पर काम करना शुरू किया- अन्यथा कौन समझदार इंसा सुईसाइड स्क्ैड का सदस्य बन कर आग में कूदना चाहेगा???
  • S.p. Singh बिल्कुल सही कहा आपने। यह एक ऐसी सोच है जो मानवता को गर्त की ओर ले जा रही है।इसके long term effects बहुत ही दुखदायी होने वाले हैं खासतौर पर उनको जिनको कुछ लेना देना नहीं है।
  • Dinesh Singh ,,,, बहुत सुन्दर पंक्तियाँ
  • S.p. Singh लगता है इसलिए साइंसदां खोजने में लगे हैं इस जहां से आगे भी एक और जहां।
    हम जैसों के लिये यही बहुत है:-

    चलो चलें बसा लें सपनों का अपना जहां.....
  • Chadha Vijay Kumar An excellent way to reduce Alcohol consumption:
    Before Marriage - Drink whenever you are SAD!
    After Marriage - Drink whenever you are HAPPY!
  • S.p. Singh शादी के पहले और बाद में साथ देने की बात हो तो कोई क्या करे?
  • Rajan Varma पीने वालों को साथ की कहाँ कमी होती है सर- एक बुलाअो- तीन आते हैं- एक के साथ दो फ्री!!!! हॉ हॉ हॉ
  • S.p. Singh चड्ढा साहब
    मौसम आज काफी खराब है 
    आज शाम का क्या प्रोग्राम है?
  • S.p. Singh राजन तुम्हारा कहना मानकर ही चड्ढा साहब से पूछने की हिमाकत की है।
  • Rajan Varma सर इसमें पूछने की आवश्यक्ता इस लिये नहीं है- क्योंकि चड्डा सर ने तो पहले ही ऐलान कर दिया है कि शादी के बाद जब-जब वे खुश होते हैं- उनका पटियाला पैग तैयार मिलता है!!!! अौर मैं तो भाभी जी को विगत् २० वर्षौं से जानता हूँ- शायद ही किसी दिन उन्हों ने चड्डा सर को खुश न रखा हो!!!!

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