Monday, January 12, 2015

नाम तुम्हारा जो कभी रेत पर लिखके मिटा दिया करता था लिख दिया है कुहासे पर......

कलम से____
दुनियां सिमट कर
indoor हो गई है
धूप भी झांकती नहीं है
उन दरीचों के पीछे से
बस निगाहें ही
झांका करतीं हैं
बाहर की तरफ
कब
यह कुहासे की भाप
जो हो गई जमा
शीशों से हटे
नाम तुम्हारा जो
कभी रेत पर लिखके
मिटा दिया करता था
लिख दिया है
कुहासे पर......
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
— with Puneet Chowdhary.
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  • Rp Singh sahi baat
  • Rajan Varma दुनिया सिमट कर इनडोर हो गई है,
    जाड़े अौर कुहासे से शायद डर गई है;
    डरे भी क्यों नाह आखिर,
    जब धूप की न चली एकौ, हमार क्या बिसात है;
  • Suresh Chadha Bahut khoob sir ji kuch dino se khuhase ka curfew ne yahi isthti bana rakhi hae mausam nae
  • Dinesh Singh नाम तुम्हारा जो
    कभी रेत पर लिखके
    मिटा दिया करता था

    लिख दिया है 
    कुहासे पर.... ----बहुत ही सुंदर रचना
  • Ajay Kr Misra कमाल की अभिव्यक्तिँ।
  • SN Gupta वाह वाह क्या कमाल है ...."नाम तुम्हारा जो कभी रेत पर लिखके
    मिटा दिया करता था
    लिख दिया है 

    कुहासे पर......"

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