Sunday, September 14, 2014

खेलत हरि निकसै ब्रज-खोरी

सूरदास के पदों में से एक पुष्प आपके लिए:-

खेलत हरि निकसै ब्रज-खोरी
कटि कछनी पीतांबर बाँधे, हाथ लिये भौंरा,चक, डोरी ॥
मोर-मुकुट, कुंडल स्रवननि बर, बसन-दमक दामिनि-छबि छोरी ।
गए स्याम रबि-तनया कैं तट, अंग लसति चंदन की खोरी ॥
औचक ही देखी तहँ राधा, नैन बिसाल भाल दिये रोरी ।
नील बसन फरिया कटि पहिरे, बेनी पीठि रुलति झकझोरी ।
संग लरिकिनी चलि इत आवति, दिन-थोरी, अति छबि तन-गोरी ।
सूर स्याम देखत हीं रीझे, नैन-नैन मिलि परी ठगोरी ॥1॥

//सुरेन्द्रपालसिंह//
Photo: सूरदास के पदों में से एक पुष्प आपके लिए:-

खेलत हरि निकसै ब्रज-खोरी
कटि कछनी पीतांबर बाँधे, हाथ लिये भौंरा,चक, डोरी ॥
मोर-मुकुट, कुंडल स्रवननि बर, बसन-दमक दामिनि-छबि छोरी ।
गए स्याम रबि-तनया कैं तट, अंग लसति चंदन की खोरी ॥
औचक ही देखी तहँ राधा, नैन बिसाल भाल दिये रोरी ।
नील बसन फरिया कटि पहिरे, बेनी पीठि रुलति झकझोरी ।
संग लरिकिनी चलि इत आवति, दिन-थोरी, अति छबि तन-गोरी ।
सूर स्याम देखत हीं रीझे, नैन-नैन मिलि परी ठगोरी ॥1॥

//सुरेन्द्रपालसिंह//

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