Sunday, September 14, 2014

सुप्रभात। 09 09 12 2014

Good morning friends.
सुप्रभात।
09 09 12 2014

"धर्मरहित विज्ञान लंगडा है, और विज्ञान रहित धर्म अंधा। ~ आइन्स्टाइन।"

आजकल फेसबुक पर हमारे मित्र श्री राजन वर्मा एक परिचर्चा में व्यस्त हैं जिसका टाइटल है " आध्यात्म : दर्शन शास्त्र का विषय है या विज्ञान का?"।

परिचर्चा बड़े रोचक दौर में पहुंच चुकी है। जिन्हें रूचि हो इस परिचर्चा में भाग ले सकते हैं।

वैसे जैसा कि ऊपर दर्शाया गया है कुछ कुछ यही विचार आइन्स्टाइन के भी हैं।

सार्थकता दिख रही है। अब ईश्वर है यह तो सब मानते हैैं। देखना यह है कि वह इस ब्रह्मांड का संचालन कैसे करते हैं।

Management of any resource is vital and world over new and new practices are being deployed. Think how this great universe is getting managed. It's a science and best managerial practices make it more complicated to understand it. Anyway one can always try to learn a new item.

//सुरेन्द्रपालसिंह//

//surendrapalsingh//

http://spsinghamaur.blogspot.in/
 — with Rajan Varma and Puneet Chowdhary.
Photo: Good morning friends.
सुप्रभात।
09 09 12 2014

"धर्मरहित विज्ञान लंगडा है, और विज्ञान रहित धर्म अंधा। ~ आइन्स्टाइन।"

आजकल फेसबुक पर हमारे मित्र श्री राजन वर्मा एक परिचर्चा में व्यस्त हैं जिसका टाइटल है " आध्यात्म : दर्शन शास्त्र का विषय है या विज्ञान का?"।

परिचर्चा बड़े रोचक दौर में पहुंच चुकी है। जिन्हें रूचि हो इस परिचर्चा में भाग ले सकते हैं।

वैसे जैसा कि ऊपर दर्शाया गया है कुछ कुछ यही विचार आइन्स्टाइन के भी हैं।

सार्थकता दिख रही है। अब ईश्वर है यह तो सब मानते हैैं। देखना यह है कि वह इस ब्रह्मांड का संचालन कैसे करते हैं।

Management of any resource is vital and world over new and new practices are being deployed. Think how this great universe is getting managed. It's a science and best managerial practices make it more complicated to understand it. Anyway one can always try to learn a new item.

//सुरेन्द्रपालसिंह//

//surendrapalsingh//

http://spsinghamaur.blogspot.in/
  • Harihar Singh जरूर अपनी बात रखेगें ।कुछ समय बाद ।अभी ड्युटी पर जाने की जल्दी हैSee Translation
  • Rajan Varma सुप्रभात्- राधे राधे सर; आइँस्टाइन जी की इस बात से मैं सहमत हूँ कि 'विज्ञान रहित धर्म अंधा' क्योंकि विज्ञान कहता है- प्रश्न पूछो, ज़िरह करो, explore करो, तलाश करो- अग़र धर्म के ठेकेदार हमें प्रश्न पूछने की इज़ाज़त ही नहीं देते, ज़िरह अौर बहस की तो बात ही दीगर है- हर बात का बस एक ही तर्क दें कि हमारे शास्त्रों में ऐसा लिखा है, उस काल में, उस युग में ऐसा होता था तो हमें भी आँख मूँद कर मान लेना चाहिये- तो ये धर्म की धर्माँध्ता ही कहलायेगी; मेरा उक्त-चर्चित परिचर्चा में बस केवल एक ही ध्येय है कि हम तकरीबन ९९% अपने मन के संशय प्रश्नोत्तर द्वारा, तर्क-संगत बहस द्वारा resolve कर सकते हैं- जैसा कि विज्ञान की पद्धति में संभव है- बाकी का १% प्रयोगशाला में परीक्षण का विषय है- जो करेगा सो देखेगा!
  • S.p. Singh मैं इस विचार से पूर्णतः सहमत हूँ।
  • S.p. Singh राजन जी,

    मेरे व्यक्तिगत विचार में:-

    1 सनातन धर्म में आस्था रखने वाले यह भलीभांति जानते हैं कि अपने वेद पुराण और उनसे जुड़ीं हुईं तमाम बाते अकाट्य सत्य हैं। मुझे सिर्फ यह कहना है कि हमारे धर्म में ही स्वतंत्रता प्राप्त है कि आप स्थापित अवधारणाओं को निराकरण भी कर लें। यही हमारी सबसे बड़ी विशेषता है। यह तो कुछ स्वार्थी लोगों के कारण और अज्ञान वश समाज में धर्म की छवि बदली हुई है। आपने सही कहा है कि तर्क संगत विचार होना चाहिए और किसी को भी यह अधिकार नहीं है कि इस स्वस्थ परम्परा को रोके।

    2 मैं कभी कभी टीवी पर भी बहस देखता हूँ जहां कुछ धर्माधिकारियों और वैज्ञानिक लोगों का जमघट होता है और हर व्यक्ति एक दूसरे के ऊपर हावी होना चाहता है। धर्म हर व्यक्ति का अपना विषय है वह चाहे जिस तरह से पूजा पाठ करे। विज्ञान को ठुकराना ठीक नहीं होगा इसलिए इस गूढ विषय पर बहस तो होनी ही चाहिए।

    मैं आपसे सहमत हूँ जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूँ।
  • Rajan Varma जी भाई साहब- मैं आपके उक्त विचारों से सहमत् हूँ; सनातन-धर्म अौर हमारे वेद-शास्त्र गलत् नहीं हैं- सिर्फ़ कुछ स्वार्थी स्वंय़भू धर्म-के-ठेकेदारों ने लोगों की अज्ञानता/अनपढ़ता/संस्कृत-का-ज्ञान न होने का लाभ उठा कर कुछ ऐसी बे-सिर-पैर की पूजा-पद्धतियाँ, चालू करवा दीं भोली-भाली जनता को भगवान का डर दिखा कर (जब कि भगवान डरने की शय नहीं है; वो तो हमारे पिता-श्री हैं तो प्रेम का रिश्ता होना चाहिये कि डर का?)- कि पूछिये मत; मुझे केवल उन चीज़ों से एलर्जी है- यही वज़ह है कि मैं किसी पँडित/पुजारी अौर ऐसे किसी ढोंगी बाबा का समर्थन नहीं करता; जो मुझे तर्क-संगत लगता है मैं उसी को follow करता हूँ। ये मेरे िपछले ५० सालों के अध्य्यन/मनन/चिन्तन का सार है- जो मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ।
  • S.p. Singh मैं भी यही कर रहा हूँ। आगे भी करता रहूँगा। यही सही भी है।
  • Harihar Singh राजन जी आप सच हो सकते लेकिन आप ने धर्म के छोटे रूप का वर्णन किया है जगत लोकाचार धर्म का ।जिस पर ठेकेदारों की रोजी चलती है यह धर्म कदापि नही हो सकता है।धर्म को व्यापक सन्दर्भ मे ले।वेदो की उत्पत्ति जिसमें सारा जीव जगत का वर्गीकरण है ।सारा का सारा ऋषियो द्वारा वैज्ञानिक तुला पर कसा था वह झूठ है।जैसे आज कोई बिना प्रयोगशाला के प्रक्रिया सफल नही होती है ।वैसे ही उस वक्त भी योगीयो के पास प्रकियायें थी ।सब खत्म हो गई ।बस बच नई विचारधारा जिसे ये ठेकेदार ओढे फिर रहे हैSee Translation
  • Harihar Singh बहुत सही दिशा दी है इस विचार मंच पर एसपी सिंह जीSee Translation
  • Umesh Chandra Srivastava हम हिन्दू लोग धर्म को ठीक से नही पढते इस लिये सत्य को नही जान पातेSee Translation
  • Rajan Varma मैं आपके विचारों से सहमत् हूँ हरिहर जी; हमारे वेद-शास्त्रों में जो जीव जगत् वर्गीकर्ण बताया है वो गलत् नहीं है अौर मैं उसका भी ज़िक्र करूँगा अौर उसी आधार पर चर्चा आगे बढ़ेगी; पर कुछ चीज़ें हैं जो मैं नहीं मानता- उद्धारण के तौर पर- पँडितों को भोज छकाने से पित्रों को तृप्ति मिलती है- मुझे ये तर्क-संगत नहीं लगता; ऐसी ही कुछ खाने-पीने की कुरीतियाँ कहाँ से हमारे धर्म का अभिन्न अंग बन गईं- समझ नही आता?
  • Harihar Singh आप सही कह रहे है ।जीव कभी भोजन नही करता है ये सारे कर्म काण्ड बनाये गये है महत्त्व इनका भी हम नकार नही सकते ।जीव के लिये नही पर इससे मानव में जरूर संस्कार आते है।पितरो को दान देते वक्त क्या हमारे बच्चों ये भान नही होता है कि हमें भी अपने मां बाप तथा स...See MoreSee Translation
  • Rajan Varma आप का कहना अपनी जगह सही है की शायद बच्चों को अच्छे संस्कार मिलें इन कर्म-काण्डों से; पर इसका दूसरा पक्ष भी है कि जब हम बच्चों को इसके पीछे का मंतव्य तर्क सहित नहीं समझा पाते तो वो इन्हें मात्र पँडितों की पेट-पूजा के अौर कुछ नही मानते; इन कर्म-काण्डों की वज़ह से सनातन धर्म की मान्यता अौर विश्वसनीयता पर प्रश्न-चिन्ह लग रहा है! ऐसा मेरा मानना है
  • Sp Tripathi धर्म वहाँ से शुरू होता है जहाँ तर्क समाप्त होता है । किसी भी संस्कार के दौरान किये गये कार्य धर्म की श्रेणी में नहीं आते । यह तो समयानुसार अपने आप बदलते रहते है । हिन्दू विवाह का रूप पिछले ५० साल में कितना बदल गया । वही हाल हर संस्कारों का है । तमाम सं...See MoreSee Translation
  • Javed Usmani सही कहना हैSee Translation

No comments:

Post a Comment