Tuesday, September 23, 2014

जाते जाते भी शूल बो जो गए आज वही शूल उनको दर्द दे गए

कलम से_____
जाते जाते भी शूल बो जो गए
आज वही शूल उनको दर्द दे गए
जुदाई का गम इनसे बेहतर 
अब कौन समझेगा
जब स्काटलैंड ही ने कह दिया
चलो कुछ दिन और रह लेगें
बहुत दिन साथ निभा न पाएगें
घृणा के बीज बोए थे हमारे लिए
आज स्वयं को ही शूल बन चुभ रहे होगें
डिवाइड एण्ड रूल की पालिसी
रंग ला रही है इनको मज़ा
अच्छा चखा रही है।
इनके साथ और भी जो खड़े हैं
मज़ा अपने कर्मों को वह भी ले रहे हैं
तालिबान लाए थे रूस के खिलाफ
वही आज जिन्हें लोहे के चने चबाने को दे रहे हैं।
दोस्तों जग की रीति यही रही है
जो बोये काटां तो कहां से खिलते फूल ।
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Subhash Sharma and Puneet Chowdhary.
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