Monday, September 29, 2014

चित्र लगता बाहर का है

कलम से _____
चित्र लगता बाहर का है
मुझे नहीं मालूम कहाँ का है
लग रहा बहुत खूबसूरत है
काश हमारे आसपास
कुछ ऐसा होता
अगर है तो पता नहीं
घर से कभी निकले नहीं
तलाश कभी की नहीं
समय शायद मिला नहीं
या इच्छा जागृत हुई नहीं।
होता तो क्या होता
कुछ फर्क नहीं पड़ता
हमारा जीवन बस यूँही चलता
जैसे चल रहा है
हम सोते रहते
सूरज रोज़ आता है
चला जाता है
काम है उसका वो करता रहता है
हमको भी काम अपना करना होता है।
आलस छोड़
चलें घर के बाहर
पूरब की ओर देखें
लालिमा है फैली हुई
आओ देखो, कुछ ऐसा कहती हुई
हर रोज़ मुझे नये परिधान में पाओगे
नज़र उठा कर जो देखोगे
खुश हो जाओगे
पल दो पल के लिए ही सही
तुम अपने हो जाओगे
यही अपनापन तो खो गया है
खोखले रिश्तों में ढूंढते फिरते हो
जो तुम्हारा अपना है
उसकी ओर न देखोगे
आ जाया करो मेरे पास भी कभी
मिलेगी तुमको अनंत खुशी
आचँल में मेरे खुशियाँ ही खुशियाँ है
ले सको ले लो जो तुमको लेनी हैं
बाजार में नहीं बिकतीं
यह बस मेरे पास ही मिलतीं हैं।
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Subhash Sharma and Puneet Chowdhary.
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  • Harihar Singh बहतरीन उदगार।बहुत सुन्दरSee Translation
  • Rajan Varma सर- बाह्य खूबसूरत नज़ारों का आनन्द उठाने के लिये समय अौर धन दोनों की आवश्यक्ता होती है- अौर ये दोनों ही संसाधन एक आम हिंदुस्तानी की किस्मत में शायद नहीं हैं; ये दृश्य US में आम है क्योंकि हर सोसाईटी के आस-पास well-trimmed lawns and water-bodies almost mandatory हैं; वहां पानी की बहुतायत है अौर यहाँ कमी होती जा रही है- ऐसे में having water-bodies around, may be a luxury in India
  • Neeraj Saxena Behtreen presention
  • Bhawesh Asthana दुनिया की सबसे खूबसूरत चीजें ना ही देखी जा सकती हैं और ना ही छुई , उन्हें बस दिल से महसूस किया जा सकता है.I.....बहुत सुन्दर
  • S.p. Singh मैं आज से तकरीबन तेरह साल पहले कोड़ईकैनाल और ऊटी गया था। मुझे ऐसे नैसर्गिक दृश्य आज भी याद हो आते हैं। क्या करें हमारे दुश्मन वहाँ तक नहीं पहुँच पाए इसलिये वह जगह आज भी रमणीक बनी हुई हैं। खुदा उनको जिन्दगी से मरहूम करे जो आज भी इस लूट में लगे हैं जो थोडा बहुत बचा है वह भी न बचेगा अगर यह लोग यूँही ही जुटे रहेगें। बहरहाल आजकल आसमान साफ है सूरज, चाँद, तारे देख कर ही दिल बहलाने का जरिया खोजते हैं। वकौल राजन जी के हिन्दोस्तां को अमेरिका बनाना तो नामुमकिन लगता है।125 करोड को कहाँ से तीस करोड करें जब हर आदमी दो तीन और कुछ तो दस बीस की गिनती गिन रहे हैं। भाडचूल्हे में जाए ऐसी सोच मुआ कोई इन बेबकूफों का समझाता भी तो नहीं है। कानून कहाँ से बनेगा धर्म जब बीच में टाँग फसाए जो पड़ा है।
  • Anand H. Singh beautiful liness came out of HEART and touched soul as well.
  • Anjani Srivastava बहुत सुन्दर.... सर जी !See Translation
  • Suresh Chadha Suprabhatam mitro 
    Bhaut man.mohak rachna
    See Translation
  • Ram Saran Singh आँचल में मेरे,,,,,,,," । आप कवि हृदय है जब आपकी रचनाओं से हम जैसे दूरदराज़ बैठे ख़ुशी का लुत्फ़ उठा सकते हैं को पास रहने वालों का क्या कहना । यह भी सही है कि खोखले रिश्तों में ख़ुशियाँ नहीं मिलती । रचना भावप्रधान है महोदय । धन्यवाद ।
  • Sp Dwivedi KHUBSURTI KA KHUB SURAT CHITRAN.

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