Thursday, October 2, 2014

कुछ छण जीवन में ऐसे आते हैं

कलम से____
कुछ छण जीवन में ऐसे आते हैं
अपने ही अपनों को दूर ले जाते हैं
गंगा जल पिला यह आशा करते हैं
मुक्ति मिले जो हमसे चिपके हैं ।।
शाश्वत सच को कोई ठुकराए कैसे
अंतिम छण में भुलाए अपनों को कैसे
दशरथ राम राम कहते ही स्वर्ग पधारे
मिल न सके जो थे आखों के तारे ।।
राम अंत समय न मिल पाए
ज्येषठ पुत्र हो मुखाग्नि न दे पाए
राम रहे बन लछमन सीते संग
तातश्री के हुए न अंतिम दर्शन ।।
वचन से बिंधे रहे अजोध्या से दूर
प्रणाम अंतिम किया रहते हुए दूर
मन ही मन लिया प्रभु का नाम
पिताश्री को मिले उचित स्थान ।।
संकल्प लिए हैं जो पूरे करने हैं
पाप मुक्त धरा अभी करनी है
माँ तेरा ले नाम समर जाऊँगा
वचन पूर्ति पर ही अजोध्या आऊँगा ।।
जै श्रीराम।।
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Subhash Sharma and Puneet Chowdhary.
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