Monday, October 6, 2014

------बगल से गुजर रहा था धीरे से पुकारा और कहने लगा, एक फूल ।

कलम से_____
------बगल से गुजर रहा था
धीरे से पुकारा और कहने लगा,
एक फूल ।
एक रोज़ भर की ही है, जिन्दगी मेरी
शाख से गिर मिट्टी में मिल जाऊँगा....
कद्रदान आज कोई नहीं आएगा
मन्दिरों में भीड़ कम जो हो गई है।
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Subhash Sharma.
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  • Anjani Srivastava 'कद्रदान' आज कोई नहीं आएगा....न मंदिर में न मस्जिद में और न ही चर्च और गुरुद्वारों में......सच पूछो तो भटक रहे हैं सभी यहाँ 'स्वार्थ' के गलियारों में....See Translation
  • Sp Dwivedi चन्द पक्तिओं में गूढ़ दर्शन. सुन्दर सृजन सर
  • Rajan Varma मँदिरों में भीड़ तो बरसाती परनालों की न्याई है; बरसात होती है साल में एक बार तो चल निकलते है परनाले- बरसात खत्म, तो परनालों का अस्तित्व भी ख़त्म; इँसान की श्रद्धा भी बरसाती है- लेकिन फ़ूल का खिलना बरसाती नहीं है; वो खिलता है अपने सौंदर्य के लिये- उसे जीता है- बिना ये परवाह किये, िक उसकी सुन्दरता का कोई कद्रदान है अथवा नहीं- अौर फ़िर मिट्टी में समा जाता है;
  • Satyendra Shukla Truth and nice.

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