Friday, October 10, 2014

बीत गई अब मिलन की बेला !!!

कलम से____

बीत गई अब मिलन की बेला !!!
धुंधले मन से निकली
उर-तन्त्री की पीड़ा
यूँ कहती, समाप्ति पर है अब यह जीवन लीला !!
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
आकाश में गतिविहीन सितारे
मांग रहे साथ हाथ पसारे
सूनी मागें, सूरज किरणों से हमने दुख दिन भर झेला !!
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
मनवा हो रहा बिचिलित
लयताल श्वासों का टूटा
आस मिलन की लिए, अंतस खाली खाली सा डोला !!
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
नभ में विचरण करता
आकुल व्याकुल सा
राह नीड़ की खोज रहा है, बिछड़ा पंक्षी एक अकेला !!
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Subhash Sharma and 3 others.
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  • Rajan Varma उदास रचना आपने भी पोस्ट कर दी- हरिहर भाई की पोस्ट पर भी अभी मैंने उदासीनता देख दुख व्यक्त किया;
    20 hrs · Like · 2
  • Ram Saran Singh महोदय, रचना पढ़ने में बड़ी मज़ेदार लगी । "बीत गई अब मिलन की बेला" की ध्वन्यात्मकता बेहतरीन है । लेकिन लेकिन रचना में नैराश्य झलक रहा है आख़िर बात क्या है ।
    19 hrs · Unlike · 2
  • Anjani Srivastava कैसा है जूनून...कहीं मिले न सुकून.....'बीत गई अब मिलन की बेला' !See Translation
    19 hrs · Unlike · 2
  • Anand H. Singh seems to be sad ,chalo yehi sahi ek kavi ka hi toh mijaz hai.See Translation
    18 hrs · Unlike · 1
  • Shravan Kumar Sachan Sunder rachna
    18 hrs · Unlike · 2
  • Subhash Sharma JAY HIND
    15 hrs · Unlike · 1
  • Sunil Gupta कवि कभी निराश नही होते और कभी बुड्ढे भी नही होते कविता अच्छी पर निराशा का भाव परिलक्षित होता हुआ क्यों ?
    14 hrs · Unlike · 1
  • BN Pandey KABHI KABHI MUN BICHLIT HO JAATAA HAI TO ES TARAH KE BHAAV AA HI JAATE HAI..........AKHIR HUM INSAAN JO HAI............
    3 hrs · Unlike · 1

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