Saturday, October 11, 2014

ऐसा इसमें क्या है जो इस बेकरारी से इतंजार करते हो

कलम से____

ऐसा इसमें क्या है
जो इस बेकरारी से इतंजार करते हो
थोड़ा लेट क्या हो जाता है
परेशान से हो जाते हो
इतने परेशान तो पहले कभी नहीं होते थे ।
हाँ,
मैं जब लेट हो जाती थी
तब तुम
इधर से उधर और उधर से इधर
टहला करते थे
जैसे अब टहला करते हो।
सुनके बात मेरी खड़े हो गए
अखबार हाथों में था
सीने से लगा लिया
कहा धीरे से
आज भी
दिल मेरा तुम्हारे लिए धड़कता है
इसमें दूसरा न कोई बसता है ।
छोड़ो भी,
छोड़ो चाय लाई हूँ,
चाय पियो ठंडी न हो जाय
चश्मा आँखों पर चढ़ा
फिर वो खो गए
अखबार में............
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Subhash Sharma and Puneet Chowdhary.
LikeLike ·  · 
  • Ramsevak Gupta Madhyambargiy Amarprem katha. Anupam rachana shailee.
  • S.p. Singh धन्यवाद दादा।
  • Sp Dwivedi सुमंगल प्रात,
  • Neeraj Saxena Anupam rachna
  • Ram Saran Singh "है वस्ल से ज़्यादा मज़ा इंतिजार में" महोदय कभी कभी लंबा इंतिजार भी अच्छा लगता है । धन्यवाद ।
  • Rajan Varma तुम्हारे लिये दिल-की-धड़कन अौर बेकरारी से इंतेज़ार से ले कर इस निगोड़ी अख़बार के इंतेज़ार तक का सफ़र- चश्में के छः नम्बर के पीछे कहीं छुप गया है; लाअो चाय ठंडी हो रही- हुद-हुद आता ही होगा!
    राधे राधे सर
  • BN Pandey ZINDAGI SHAAYAD ESI KAA NAAM HAI...SHULIYAA, MAJBOORIA, TANHAAIYAA.............KYAA YAHI HOTI HAI SHAAME INTZAAR..AAHATE, GHABRAAHATE, PERCHHAIYAA.............SIR KYO AAP HUM LOGO KO ATEET ME DHAKELATE HAI............
    23 hrs · Unlike · 2
  • Anjani Srivastava सुप्रभात, सुंदर विवरण सर जी....! चाय पिके...चश्मा आँखों पर चढ़ाके... फिर वो खो गए अखबार में........पहली खबर.... आज ‘करवाचौथ’ हैं..... आप को हार्दिक शुभकामनाये...... !See Translation
    21 hrs · Unlike · 1

No comments:

Post a Comment