Friday, October 17, 2014

तेज रफ्तार जिन्दगी

कलम से____

तेज रफ्तार जिन्दगी
रुकने लगी है,
उम्र का अहसास
दिलाने लगी है,
चलते चलते थमने सी लगी है
शाम भी डूबने से पहले,
एक पल को ही सही,
रुकने सी लगी है।

तुम से जब मिला था,
साल बहुत गए
उसके बाद बदल गया बहुत हूँ
मिलो कभी अगर
पहचान न पाओगे शायद
चेहरे की रौनक बुझ सी गई है
एक लौ है, जो जल रही है
राह जीवन की दिखा रही है
कभी कभी
कानों में धीरे से आकर कह रही है
कह देना,
बात कह न पाया था
तुमसे,
कहने को जो रह गई है।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Subhash Sharma and Puneet Chowdhary.
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  • Sp Dwivedi sunder
    21 hrs · Unlike · 2
  • S.p. Singh धन्यवाद।
    21 hrs · Like
  • Harihar Singh वाह बहतरीन अंदाज।बहुत सुन्दरSee Translation
    21 hrs · Like
  • BN Pandey SIR HUMANE SUNAA HAI SHER KABHI BURHAA NAHI HOTAA.AAP JAISAA ZINDAA DIL UMR KE UTAAR - CHARHAAW PER KYO SOCHANE LAGAA....HAA JO GUJARE WAQT KI BAATE ADHURI HAI USE AISE ANDAAZ ME PESH KARANAA CHAAHUYE JISASE SAMANE WAALE KO DIL BAAG- BAAG HO JAAYE.......SHUBH KAMANAYE
    21 hrs · Edited · Unlike · 2
  • S.p. Singh कविता की पुकार। दिल की गहराई तक तो उतरना ही पडेगा। नहीं तो कौन पसंद करेगा इस तरह की कविता को।
    21 hrs · Like · 1
  • BN Pandey YAKEENAN SIR.......KAVI KI KALPANAA TO ANANT HOTI HAI
    20 hrs · Unlike · 1
  • Neeraj Saxena Yakeenen singh sahab
    20 hrs · Unlike · 1
  • Anjani Srivastava बहूत ख़ूब सर जी ! बड़ी तब्दीलियां लायें हैं ‘हम’ अपने ‘आप’ में
    पर आपकी 'याद’ में रहने की ‘आदत’ अब भी बाकी है……
    See Translation
    20 hrs · Unlike · 1
  • Rajan Varma ज़िन्दगी की रफ़्तार बनाये रखने के लिये बराबर उर्ज़ा-पूर्ति होती रहनी चाहिये- अौर उर्ज़ा की जननी है कुछ नयापन घटित होता रहना चाहिये जीवन में; एकरसता बोरडम की जननी है; जीवन के हर पड़ाव में कोई न कोई नया शौक पाल लेने से आश्चर्यजनक परिणाम देखने को मिलते हैं- बहरहाल इस सब के चक्कर में आप अपनी बात अपने दिलबर को कहना न भूल जाइयेगा- and its never too late to make amends!
    राधे राधे सुप्रभात् सर
    20 hrs · Unlike · 2
  • Brahmdeo Prasad Gupta maturity removes all the shallow acts and feelings this is life.
    19 hrs · Unlike · 1
  • SN Gupta इससे सुन्दर विवेचना और क्या हो सकती है जीवन की 
    'तेज रफ्तार जिन्दगी
    रुकने लगी है,
    उम्र का अहसास
    दिलाने लगी है,
    चलते चलते थमने सी लगी है
    शाम भी डूबने से पहले,
    एक पल को ही सही,
    रुकने सी लगी है'
    बहुत ही .........क्या लिखूं शब्द ढूंढता ही रह गया,बधाई एस पी सिंह साहब
    19 hrs · Unlike · 1
  • Suresh Kumar Great lines Mr. Singh
    18 hrs · Unlike · 1
  • Bhawesh Asthana इस ज़िन्दगी यानि जीवन की बहुत ही अच्छी एवं यथार्थ विवेचना सर जी
    17 hrs · Unlike · 1
  • Puneet Chowdhary Sir i have a request these lines are very good but depressing .Pls write your usual Kanha or Kabutur Kabutari lines.Not to take any credit for your brilliance
    14 hrs · Like
  • Ram Saran Singh मैंने शायद पहले भी आपकी किसी रचना पर लिखा था कि ज़िंदगी को अपने मिज़ाज से चलने दीजिए । थकने का नाम न लीजिए । पुरानी यादों के इबारत से नया अहसास आने दीजिए । फिर आप जैसे क़लम के बादशाह कैसे थकेंगे । धन्यवाद ।
    12 hrs · Like
  • Puneet Chowdhary yes ram jee thats what i wanted to say.
    12 hrs · Like

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