Monday, October 6, 2014

नंगे पाँव तुम्हारे ही नहीं हमारे भी हैं

कलम से____
नंगे पाँव
तुम्हारे ही नहीं
हमारे भी हैं
पाँव में
छाले तुम्हारे ही नहीं
हमारे भी हैं
हम छुपाते फिरते हैं
कुछ दिखा के अफसाने बना देते हैं........
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Subhash Sharma and Puneet Chowdhary.
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  • Bhawesh Asthana जहाँ हाथ पकड़ के हम तुम
    चले थे कभी कभी दौड़े थे
    उस ज़मीन पर मुहब्बत ने अपने
    नाज़ुक नक्श-ए-पाँव छोड़े थे

    अब फिर इक बार हमारा सफ़र वही है
    तो उसी नक्श पे पैर रख के चलते हैं
    तन्हा मुसाफ़िर है और धूप भी तेज़ है
    पर सफ़र में अब पैर नही जलते हैं
    उसी नक्श पे पैर रख के चलते हैं
  • S.p. Singh बहुत खूब। मजा आ गया।
  • Anand H. Singh Bahut Khoob, Kavi ki nazar se koi topic bach hi nahi sakta.Wajid ne kaha tha,""Farsh e makhmal pe mere pair(FOOT) cheele. jate hai. wahi yaad a gayaSee Translation
  • S.p. Singh अच्छा साहित्य अच्छा ही रहता है इसलिए दिल को लग जाने वाली हर बात बरसों याद रहती है। इसीलिए सिहं साहब को आज याद हो आई " फर्श ए मखमल पल मेरे पैर छिले जाते हैं"।
    मेरा मन वाह वाह कहने को कर रहा है।
  • Rajan Varma मैं पाँव के छाले छिपाता हूँ, इसलिये नहीं कि मेरा ये शौक है- सिर्फ़ इसलिये कि कहीं उन्हें तकलीफ़ न हो; 
    अपनी तक़लीफ़ तो काबिले-बरदाश्त है, उनकी भी झेलनी पड़ी तो फ़ट पड़ेगा जिगर;
  • Ram Saran Singh महोदय दर्द को छिपाना या चुपचाप सहन करना भी मन की सबलता है । धन्यवाद ।

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