Friday, October 31, 2014

मुर्दों के शहर में लाशें आने लगीं हैं भीड़ यहाँ फिर से बढ़ने लगी है

कलम से____

मुर्दों के शहर में लाशें आने लगीं हैं
भीड़ यहाँ फिर से बढ़ने लगी है
चार दिन की चादंनी थी बिखरी रही
अंधड चला जो धुंधली अब पड़ने लगी है !!

मागँ भरी जो दिखती रही चार दिन तक
फिर सूनी सूनी सी दिखने लगी है
चौखट से चिपके पैर जस के तस रह गए हैैं
महावर की चमक भी फीकी पड़ने लगी है !!

रौनक चेहरे पर जो आ गई थी
हौले हौले फिर उड़ने लगी है
सभंले हुऐ अभी दिन दो हुए नहीं है
तिल तिल कर जिन्दगी काटने लगी है !!

मुर्दों के शहर में लाशें वापस आने लगीं हैं
भीड़ यहाँ फिर से बढ़ने लगी है !!

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Puneet Chowdhary.
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