Friday, October 31, 2014

तम झोंपड़ी के दूर मैं सामर्थ्य भर करता रहा

कलम से____
तम झोंपड़ी के दूर
मैं सामर्थ्य भर करता रहा
था अकेला 
सिहरता रहा सरद रातों में ठिठुरता रहा
मरता रहा जीता रहा
रात भर मैं, फिर मी
जलता रहा !!
सूर्योदय
के पहले ही
मुझे बुझा दिया,
कह कर मुझे, यूँ विदा किया
साध्यं बेला में
फिर प्रज्वलित कर लेगें
तिमिर
इस कुटिया से दूर कर देंगे
थोड़ा सा प्रकाश कर
हम फिर जी लेगें !!
मन प्राण हमारे
बसते हैं यहाँ
जायें तो जायें अब कहाँ
शेष कुछ खुशियां हैं हमारे भाग में
सबको खुशी मनाते देख
हम भी थोड़ा ही सही खुश हो लेंगे !!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
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