Thursday, November 6, 2014

आपाधापी जीवन की समाप्ति पर जब आती है

कलम से_____

आपाधापी जीवन की
समाप्ति पर जब आती है
सही मायने में 
जिन्दगी तब शुरू होती है !!
आराम से रहना
हमें आता नहीं
रोने रुलाने से
फुर्सत है मिलती नहीं !!
कुछ नहीं होता
हम अगल बगल से
दुख उधार ले लेते हैं
खुशियों से दूर भागते रहते हैं !!
वक्त की राह चलो यारो
जो कुछ है पास तुम्हारे
बांट कर उसे देखो यारो
कभी जंगल की ओर चलो यारो
पहाड़ पर चढ़ सीना खोल हँसो यारो
बचीखुची है जोभी अब
यह मान जियो यारो
आना है अब दुबारा यहाँ नहीं
जो भी है उसको जियो यारो !!!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Puneet Chowdhary.
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  • BN Pandey PRABHU NE HER INSAAN KO NATURAL GIFT( SATISFACTION, JOY, HELP OTHERS, HAPPINESS) KE SAATH ES NASHWAR SANSAAR ME BHEJAA HAI KINTU HUM ESKAA ANAND LENE KE JAGAH DUSARI ULJHANO ME SAMAY NASHT KARATE HAI............GOOD MORNING SIR
  • Sanjay Joshi बहुत बढ़ीया विचार, सर..See Translation
  • Ram Saran Singh महोदय । ठीक कहा आपने । जब ज़िंदगी के रंजोगम और आपाधापी से फ़ुर्सत िमलती है तभी नव जीवन का सूत्रपात होता है । यही परिपक्व चिंतन काल होता है । यहीं से शुद्ध वैचारिक धारा प्रस्फुटित होती है । बढ़िया महोदय । धन्यवाद
  • Anjani Srivastava बहुत सुंदर विचार सर जी !See Translation
  • Harihar Singh बहुत जीवन जीने की कला बताई बहुत सारगर्भित लगी ।बहुत सुन्दरSee Translation
  • Rajan Varma हमारे अधिकांश दुख उधारी के होते हैं- पड़ोसी के पास सैंट्रो है तो मेरे पास आल्टो क्यों? मेरे सहकर्मी को २००० तरक्की मिली तो मुझे १८८० के मिलने से सुख नहीं अपितु दुख की अनुभूति होती है; मेरे दुष्मन का बेटा मर गया- इसमें मेरा क्या भला हआ भला? परन्तु नहीं- मुझे अति प्रसन्नता अौर शांति का आभास होता है; 
    हमारे पैमाने ही ग़लत हैं सुख-दुख, खुशी-ग़मी नापने के- तो भला जीवन सुखमय कैसे हो सकता है? 
    मन के पीछे चलते हैं तो कहता है- अौर चाहिये, अौर तेज़ भागो, १८-१९ घंटे काम करो- सूख मिलेगा!!!
    पाश्चात्य देशों- जिसमें स्वीडन प्रमुख है- अब इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि "Success does not lies in running faster and faster- 'Go slow' is the latest Mantra"- अौर यकीन मानिये वोह इस मानसिकता को अपनी व्यवसायिक ज़िन्दगी में बाखूबी अपना रहे हैं; स्विश घड़ियाँ जो सारे विश्व में सर्वोत्तम गुणवत्ता के माणकों पर खरी उतरती हैं- उन घड़ियों का एक नया डिज़इन दो-अढ़ाई वर्ष में ही निकल पाता है!!! 
    ख़ैर हमें क्या? हमें तो पाश्चातय देशों की कुरीतियाँ ही अपनानी हैं- अच्छाइयाँ जायें भाड़ में!!!
  • Sp Tripathi वक़्त के संग ही हर ख़ुशी मिलती और ंंंंंं जाती आती है । बहुत अच्छा लगा ।See Translation
  • Ram Saran Singh माननीय वर्मा जी की टिप्पणी बढ़िया लगी । पड़ोसी का सुख प्रायः दुखों का कारण बनता है । At some or other point of time we have to accept that " success does not lies in running faster and faster". Thanks sir.
  • S.p. Singh आज नेट दिन भर डाउन रहा। बीसएनएल के सहारे जो हैं।
  • S.p. Singh आप सभी मित्रों का हार्दिक धन्यवाद।
  • Raj Gupta बहुत सुंदर!See Translation

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