Thursday, November 20, 2014

ढूँढ कर है लाना है मुझे वापस धरा पर तक रहे हैं उसे न जाने कितने प्यासे नयन.....

कलम से______
अनमने मन से
कल रात से
चाँद को ढूंढता रहा
कब वह सागर के सीने
पर हस्ताक्षर करेगा
कब वह मुझे दिखेगा....
न दिखा कल रात
न दिखा आज प्रातः भोर
के पहले पहर में
न जाने खो गया है कहां
ढूंढू तो ढूंढू उसे कहाँ ....
आखिरी प्रयास है मेरा
ढूंढ कर मानूँगा मैं
खो गया है चला गया है
क्यों दूर इतना
हो गया है ओझल
निगाहों से क्यों
कल्पना की प्रतंन्च्या पर चढ़ वाण बन
मैं चला नभ मंडल की ओर
चाँद की खोज में
ढूँढ कर है लाना है मुझे वापस धरा पर
तक रहे हैं उसे न जाने कितने प्यासे नयन.....
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
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