Thursday, November 20, 2014

अब ढूँढते हैं, कहाँ है बसेरा।

कलम से_____

हर तरफ तम है, है तम का घेरा
कौन कहता है, है ये अदभुत सवेरा।
चाहती है किरन कि चमके मगर
खुद दिवा पर घना है अंधेरा।
फूल रोते हैं, शूल हँसते हैं
यह कौन सा है चितेरा।
घोंसला हमने खुद उजाड़ा
अब ढूँढते हैं, कहाँ है बसेरा।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Puneet Chowdhary.
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  • Dinesh Singh बहुत ही खूबसूरत रचना हैSee Translation
  • Rajan Varma किरन चमकेगी, तम का घेरा छंटेगा- चुनाव सर पर हैं- चुन लीजिये न, अपनी पसंद का दिवाकर;
    ध्यान बस इतना रखना है कि अस्त न हो जाये वोह सूरज- अागामी ४९ दिन में!!!
  • S.p. Singh आप जिनकी ओर इशारा कर रहे हैं। उनको वोट देने कि अधिकार हमें नहीं है। हम दिल्ली के बाहर हैं।
  • S.p. Singh "उजालों की ज़रूरत है अपने घर में इसका ये मतलब नहीं,
    चिराग से किसी के आशियाने को अपने मजे के लिए जला दीजिए।"
  • Neeraj Saxena Behtreen presentation
  • Anjani Srivastava सर जी, आप ठीक कह रहे हैं ! एक 'मुद्दत' लग जाती है घर बसाने में,
    लोग उफ़ तक नहीं करते पूरी बस्ती 'जलाने' में.....
    See Translation
  • Ram Saran Singh माननीय "फूल रोते हैं, शूल हँसते हैं, यह कौन सा है चितेरा " बड़ी ग़ज़ब की पंक्ति । कभी कभी जीवन में विरोधाभास की अजब स्थिति बन जाती है । जब बाग़बान ही बाग़ उजाड़ दे तो क्या कहा जाए । बहुत सुंदर रचना धन्यवाद ।
  • SN Gupta वाह बहुत सुन्दर
  • Harihar Singh बहुत सुन्दर।See Translation
  • Puneet Chowdhary Sir its a beautiful portrayal of social situation today

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