Sunday, November 9, 2014

जीवन साध्यं बेला में

कलम से____

जीवन साध्यं बेला में
भूले भटके ही सही
आ जाया करो,
यादों में बसते हो,
मिल कर
कभी कैसी गुज़री है,
हाल सुना जाया करो !!
कलिका सा खिल जाता है,
उर तन्त्र प्रफुल्लित हो उठता है,
पद चाप, तुम्हारी सुन
मनुवा नृत्य आज भी करने लगता है !!
पावं तुम्हारे
महावर खूब फबती
नृत्य मग्न हो तुमने जब जब किया,
सर्वस्व न्योछावर तुम पर
सदैव हमने किया !!
जैसी भी हो
ऐसी ही बनी रहो,
यदाकदा राह गुजरते
कभी कभार यादों में चली आया करो
कुछ मेरी सुन जाया करो
कुछ अपनी बीती सुना जाया करो !!
मिल बैठेगें
क्या खोया क्या पाया
लेखा जोखा बना लेगें
कुछ बीते पलों के अहसास
हमारी पूंजी
सभाँल रखी है
कहोगी तो गंगा जी में बहा देगें,
तुम चाहोगी, पुनर्मिलन की बेला तक शेष बचा लेगें !!!

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
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