कुछ मेरी, कुछ तेरी !
Monday, December 1, 2014
कुछ गीत पुराने गुनगुनाते हैं।
कलम से____
आओ एक दिन धूप का आनंद उठाते है
हँसते हैं कुछ गीत पुराने गुनगुनाते हैं।
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
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BN Pandey
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Santosh Kumar Sharma
,
Arun Kumar Singh
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Jitendra Kakkar
टाइम पास के लिए. सुझाव अच्छा है
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November 30 at 1:49pm
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Dinesh Singh
बेहद उम्दा
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November 30 at 1:56pm
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Ram Saran Singh
बात तो ठीक है महोदय । मैं इस समय गाँव में हूँ और धूप में चौपाल लगी है । पुरानी बातें हो रही हैं कुछ लोग पुराने ज़माने के लिए तारीफ़ के क़सीदे पढ़ रहे हों तो कुछ कोस रहे हैं ।
November 30 at 2:32pm
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S.p. Singh
मैं कहना नहीं चाह रहा था पर अपने आपको रोक भी नहीं पा रहा हूँ। यह पक्तिंयां लिखते वक्त मेरे जहन में यही था कि आप गांव में धूप का और खुले आकाश का आनंद ले रहे होंगे।
November 30 at 3:20pm
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Ram Saran Singh
धन्यवाद महोदय ।
November 30 at 3:21pm
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Ajay Kr Misra
जरुरी भी है, जाड़े में धूप खाना। स्वास्थ्य वर्धक है। उत्तम प्रस्तुति है, सर।
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November 30 at 3:56pm
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Harihar Singh
बहुत खूब
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November 30 at 4:02pm
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BN Pandey
jaare ke mausam me chaahe garib ho.dhanwaan ho jis bhagy shaali ko maukaa milataa hai dhoop kaa anand jaroor letaa hai
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