कलम से____
थी किसी के दिल के करीब
गढ़ा था, गूंथा था एक चोटी की तरह
गुमनाम होकर खो गई थी
तुमने अपनी आवाज क्या दे दी
खिलखिला कर हँस पड़ी हूँ,
मैं हूँ तेरी गज़ल !!
गढ़ा था, गूंथा था एक चोटी की तरह
गुमनाम होकर खो गई थी
तुमने अपनी आवाज क्या दे दी
खिलखिला कर हँस पड़ी हूँ,
मैं हूँ तेरी गज़ल !!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
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