कलम से_____
रात हो गई
मैं ठहरी दिन की रानी
नयन पसारे
बाट जोहती
मैं तुम्हारी
फूलों पर मंड़राती हूँ
देखो, मैं कहाँ बैठ
इतंजार करती तेरा हूँ।
मैं ठहरी दिन की रानी
नयन पसारे
बाट जोहती
मैं तुम्हारी
फूलों पर मंड़राती हूँ
देखो, मैं कहाँ बैठ
इतंजार करती तेरा हूँ।
अंधकार से डर है लगता
अपना कोई यहाँ नहीं दिखता
आ भी जाओ,
समय नहीं है अब कटता।
अपना कोई यहाँ नहीं दिखता
आ भी जाओ,
समय नहीं है अब कटता।
सबकी निगाहें हैं, मुझ पर
कहते हैं लोग यहाँ
कितनी रंग बिरंगी है यह
तितली रानी लगती है
चलो पकड़ें इसे और साथ ले चलें अपने।
कहते हैं लोग यहाँ
कितनी रंग बिरंगी है यह
तितली रानी लगती है
चलो पकड़ें इसे और साथ ले चलें अपने।
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
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