कुछ मेरी, कुछ तेरी !
Friday, October 31, 2014
बाज़ार का दस्तूर ही है, कुछ ऐसा
कलम से_____
बाज़ार का दस्तूर ही है, कुछ ऐसा
सस्ता सामान आसानी से है बिक जाता,
महगें का खरीद दार नहीं मिलता !!!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
http://spsinghamaur.blogspot.in/
Like
Like
·
·
Share
Hari Hridaya
,
Surinder Gera
,
Hari Shankar Pandey
and
28 others
like this.
1 share
Shravan Kumar Sachan
Neelam heerey ke sath
19 hrs
·
Unlike
·
1
Kalpana Chaturvedi
परंतु यह सदा नहीं यदा कदा होता है।
पहचानने पर सत्य की प्राप्ति होती है।
18 hrs
·
Unlike
·
1
Umesh Sharma
हीरे को जो पहचान लें, वो नज़रें बड़ी मुश्किल से मिलती हैं
See Translation
18 hrs
·
Unlike
·
1
Harihar Singh
रहरहसयवाद से भरे विचार ।बहुत सुन्दर
See Translation
18 hrs
·
Unlike
·
1
Ajay Kumar Misra
गम्भीर भावपूर्ण रचना,
दुनियाँ में ईमानदार बड़े
मुश्किल से मिलता है।
"जय श्री राधे राधे"
See Translation
17 hrs
·
Edited
·
Unlike
·
1
Deepika Namdev
बढिया,,,
दूसरा पहलू कुछ यॅू भी है कि,,,
अगर बिकने पे आ जाओ तो घट जाते है दाम अक्सर।
...
See More
16 hrs
·
Unlike
·
1
S.p. Singh
बहुत खूब।
16 hrs
·
Like
·
1
Ram Saran Singh
आदरणीय । बाज़ार के दस्तूर में दम है । सस्ता माल जल्दी बिक जाता है । अब मैं इस आधार वाक्य को थोड़ा Twist करना चाहूँगा । चुनाव में गुंडे, लफ़ंगे, बेईमान और घटिया क़िस्म के लोग जीत जाते हैं जबकि कर्मठ, ईमानदार, भले आदमी की ज़मानत ज़ब्त हो जाती है । ब्रिटेन की महारानी ने जब सोने के सिक्के चलवाए तो देखते देखते वे सब बाज़ार से ग़ायब हो गए और घटिया सिक्के चल पड़े । महोदय आपने क़तई सही कहा है । धन्यवाद ।
15 hrs
·
Unlike
·
1
S.p. Singh
सिंह साहब आपने सही फरमाया है।
7 hrs
·
Like
·
1
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment