कुछ मेरी, कुछ तेरी !
Thursday, October 2, 2014
माँ।
कलम से____
सुई में रात भर धागा पिरोने की कोशिश करती रही, यह सोच अचकन ठीक कर दूँगी, तुम्हारे जाने के पहले।
मुझे कम्बख्त याद ही न रहा, आँखों से अब दिखता कहाँ है ..........
माँ।
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
http://spsinghamaur.blogspot.in/
Like
Like
·
·
Share
Upendra Sharma
,
Kalpana Chaturvedi
,
Shreya Singh Raghuvanshi
and
17 others
like this.
SN Gupta
वाह वाह बहुत खूब
9 hrs
·
Unlike
·
1
Surinder Gera
This is really great !
9 hrs
·
Unlike
·
2
Rajan Varma
माँ को ये याद नहीं कि दिखना कब बंद हुआ;
बेटे को ये याद नहीं कि माँ से आखिरी बार कब मिला;
क्या विडम्बना की यही परिभाषा है?
7 hrs
·
Unlike
·
2
Bhawesh Asthana
bahut hriday sparshi
5 hrs
·
Unlike
·
1
Brahmdeo Prasad Gupta
nice.
3 hrs
·
Unlike
·
1
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment