कुछ मेरी, कुछ तेरी !
Friday, October 31, 2014
तुम, तुम ही हो
कलम से_____
तुम, तुम ही हो या कोई और
मुझे यह मुगालता क्यों हो रहा है
तुम, तुम ही हो.....
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
http://spsinghamaur.blogspot.in/
— with
Puneet Chowdhary
.
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Potty Kc
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Rema Nair
,
Arun Kumar Singh
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Subhash Sharma
JAY HIND
October 29 at 12:39pm
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Anand H. Singh
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October 29 at 12:40pm
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Ram Saran Singh
चक्षुषि सर्वे भावा निहिता । जब नज़रें ऐसी हों तो मुग़ालता होगा ही । धन्यवाद महोदय ।
October 29 at 1:08pm
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Rajan Varma
भाई साहब वही है- दिल का रिश्ता आँखों के रास्ते ही तो दिल तक जाता है- फ़िर कैसे आपको मुगाल्दा हो सकता है? चेहरा दिखे न दिखे- वही झील सी गहरी नीली आँखें- अौर किसी पहचान की भला क्या आवश्यक्ता है?
October 29 at 1:11pm
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Bhawesh Asthana
भूल सकती नहीं आँखे वो सुहाना मंज़र
जब तेरा हुस्न मेरे इश्क से टकराया था
और फिर राह में बिखरे थे हज़ारो नग्में
मैं वो नग्में तेरी आवाज़ को दे आया था
October 29 at 2:52pm
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Anand H. Singh
yeh toh ek kavi hi jaan sakta hai.
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October 29 at 2:54pm
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Krishna Kumar Chandrakar
Kavi ki kalpnaye,kitna chha hai,
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October 29 at 4:44pm
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Ajay Kumar Misra
कह दो जी, निशाना चूक न जाये।
वाह,बहुत खूब।
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October 29 at 5:48pm
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SN Gupta
सुंदर
October 29 at 5:12pm
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Bhawana Sinha
veri nice
October 29 at 7:19pm
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Ishwar Dass
nice
October 29 at 7:35pm
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Javed Usmani
वाह
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Yesterday at 4:12am
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