Monday, October 13, 2014

मंजिल मेरी यह थी ही नहीं

कलम से____

मंजिल मेरी यह थी ही नहीं
रुकी थी मैं,
पल दो पल के लिए
चल सको तो साथ कदम मिलाकर चलो
वरना
मैं अकेले ही चली जाऊँगी,
अपनी मंजिले मकसूद की ओर.......
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Subhash Sharma and Puneet Chowdhary.
LikeLike ·  · 

No comments:

Post a Comment