कुछ मेरी, कुछ तेरी !
Saturday, October 11, 2014
कौन है,
कौन है, जिस पर निगाह मेरी आकर यूँ रुक गई
पुरानी सी एक बात ख्वाब न जाने कितने जगा गई !!!
//सुरेन्द्रपालसिंह//
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Arun Kumar Singh
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Narendra Kumar Singh Sengar
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Amrendra Mishra
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Ram Saran Singh
बेहतरीन, अजीजतरीन । "न जाने कितने ख़्वाब जगा गई" मैं भी अपनी ओर से आपकी इजाज़त से कुछ जोड़ना चाहूँगा : " न जाने कौन उजड़े दयार में दस्तक दे गया, बेशुमार ख़्वाब बेताब हो उठे" धन्यवाद आदरणीय ।
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Anjani Srivastava
सर जी, आज ‘करवाचौथ’ हैं..... 'कशिश' हो तो दुनिया मिलने को मचलती है,
मगर जिंदगी 'मोहतरमा' से नहीं 'बीवी' से ही चलती है....शुभकामनाये !
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16 hrs
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Ram Saran Singh
अंजनी जी आपने भी कमाल लिख दिया ।
16 hrs
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Anjani Srivastava
धन्यवाद सर जी !
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Lata Yadav
बहुत सुन्दर रचना
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SN Gupta
बहुत सुन्दर
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