कलम से____
कुछ छण जीवन में ऐसे आते हैं
अपने ही अपनों को दूर ले जाते हैं
गंगा जल पिला यह आशा करते हैं
मुक्ति मिले जो हमसे चिपके हैं ।।
अपने ही अपनों को दूर ले जाते हैं
गंगा जल पिला यह आशा करते हैं
मुक्ति मिले जो हमसे चिपके हैं ।।
शाश्वत सच को कोई ठुकराए कैसे
अंतिम छण में भुलाए अपनों को कैसे
दशरथ राम राम कहते ही स्वर्ग पधारे
मिल न सके जो थे आखों के तारे ।।
अंतिम छण में भुलाए अपनों को कैसे
दशरथ राम राम कहते ही स्वर्ग पधारे
मिल न सके जो थे आखों के तारे ।।
राम अंत समय न मिल पाए
ज्येषठ पुत्र हो मुखाग्नि न दे पाए
राम रहे बन लछमन सीते संग
तातश्री के हुए न अंतिम दर्शन ।।
ज्येषठ पुत्र हो मुखाग्नि न दे पाए
राम रहे बन लछमन सीते संग
तातश्री के हुए न अंतिम दर्शन ।।
वचन से बिंधे रहे अजोध्या से दूर
प्रणाम अंतिम किया रहते हुए दूर
मन ही मन लिया प्रभु का नाम
पिताश्री को मिले उचित स्थान ।।
प्रणाम अंतिम किया रहते हुए दूर
मन ही मन लिया प्रभु का नाम
पिताश्री को मिले उचित स्थान ।।
संकल्प लिए हैं जो पूरे करने हैं
पाप मुक्त धरा अभी करनी है
माँ तेरा ले नाम समर जाऊँगा
वचन पूर्ति पर ही अजोध्या आऊँगा ।।
पाप मुक्त धरा अभी करनी है
माँ तेरा ले नाम समर जाऊँगा
वचन पूर्ति पर ही अजोध्या आऊँगा ।।
जै श्रीराम।।
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
No comments:
Post a Comment