कलम से____
लंबा सफर तय करके
पहुँच पाए हैं
आज हम यहाँ
खेतों को कैसे सींचा जाता था
घर का काम काज कैसे चलता था
मरु में पानी की तलाश में
हिरन कैसे भटका करता था
दूर दूर से सिर पर
पानी मटकों गगरी कलशों में लाना पड़ता था
महिलाओं की
कहारों की
यही कहानी है
गाँव का जीवन
बस पचास साल पहले तक
यही हुआ करता था
पर जैसा भी था
मेरा अपना था
मन को भाता था
बातें घर की
अपने मन की
पनघट पर हो जाती थीं
अब तो न कुछ कह पाते
और न कुछ सुन पाते हैं
बहरे गूँगे
से बस हो जाते हैं
कैसे कैसे रूप
यहाँ देखने को मिल जाते हैं
जीवन बस चलने का नाम
पहुँच पाए हैं
आज हम यहाँ
खेतों को कैसे सींचा जाता था
घर का काम काज कैसे चलता था
मरु में पानी की तलाश में
हिरन कैसे भटका करता था
दूर दूर से सिर पर
पानी मटकों गगरी कलशों में लाना पड़ता था
महिलाओं की
कहारों की
यही कहानी है
गाँव का जीवन
बस पचास साल पहले तक
यही हुआ करता था
पर जैसा भी था
मेरा अपना था
मन को भाता था
बातें घर की
अपने मन की
पनघट पर हो जाती थीं
अब तो न कुछ कह पाते
और न कुछ सुन पाते हैं
बहरे गूँगे
से बस हो जाते हैं
कैसे कैसे रूप
यहाँ देखने को मिल जाते हैं
जीवन बस चलने का नाम
चलना ही इसका काम......
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
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