कलम से____
मैं अपना नहीं दोस्तों का दर्द हूँ बांट रहा
कह कर छोड़ा घरवार अभी मैं जा रहा।
कह कर छोड़ा घरवार अभी मैं जा रहा।
दूर होते चले गए रिश्ते नाते सब छूट गए
लौटना चाहते हुए भी हम लौट न आ पाए।
लौटना चाहते हुए भी हम लौट न आ पाए।
पैसा कमाया काम धंधा जमाया इसी में रह गए
घर बसाया यह लाये कभी वो इसी में लगे रहे।
घर बसाया यह लाये कभी वो इसी में लगे रहे।
इतनी दूर हम आ गए अब यहाँ के होकर रह गए
बच्चे गाँव जाना चाहते नहीं, वहाँ कभी नहीं गए।
बच्चे गाँव जाना चाहते नहीं, वहाँ कभी नहीं गए।
अब सब कहते हम यहीं रहेंगे, जाना है तुम जाओ
न जमीं अपनी न आसमां अपना कोई बतलाओ।
न जमीं अपनी न आसमां अपना कोई बतलाओ।
न जाना अपनी जमीन से बाबू कहते कहते मर गए
गलती थी करी जो हम सबको छोड़ यहाँ आ गए।
गलती थी करी जो हम सबको छोड़ यहाँ आ गए।
होता जब दंगा फसाद नहीं दिखता कोई भी अपना पास
बहुत घबराता है दिल लौट गाँव जाने को बहुत है करता।
बहुत घबराता है दिल लौट गाँव जाने को बहुत है करता।
क्या कहें क्या करें समझ कुछ न अब आए
है सब छूट गया लौट के उल्लू घर कैसे को आए।
है सब छूट गया लौट के उल्लू घर कैसे को आए।
हर चलती सांस पर लगता सांस अब निकलती है
पहुँचे मिट्टी कैसे गाँव सोच तबीयत मचलती है।
पहुँचे मिट्टी कैसे गाँव सोच तबीयत मचलती है।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
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