कुछ मेरी, कुछ तेरी !
Wednesday, January 7, 2015
मैं, धूप कल भी नहीं आऊँगी
कलम से____
कल की शाम
जाते जाते कुछ कह गई
मैं
धूप कल भी नहीं
आऊँगी
न करना मेरा
इंतजार
रहना रजाई के भीतर ही
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
— with
Puneet Chowdhary
.
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Kunwar Bahadur Singh
,
Rajan Varma
,
Singh Meera Kashyap
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Rp Singh
आजकल धुप तोउस प्रेयसी की तरह हो गयी है जो सिर्फ इंतजार कराती है
2 hrs
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S.p. Singh
वास्तव में सिह साहब आलम यह है कि बस बैठे रहिये निगाह लगाये आसमां की ओर कब आना होगा उनका भला।
1 hr
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एस.पी. द्विवेदी
---
मेरे यहाँ तो खिल है ,खूब सुनहरी धूप
बाहर बैठे मौज से ,.क्या रंक क्या भूप |
1 hr
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S.p. Singh
मौज करिये हम लोग तो रजाई में ही हैं।
1 hr
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Ram Saran Singh
महोदय । इस समय बेंगलुरु का मौसम बड़ा सुहाना है । एक स्वेटर दो या तीन दिन इस्तेमाल किया अब वो भी नहीं ।
1 hr
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Rajan Varma
धूप कहाँ कभी अपनी मर्ज़ी से निकलती है,
वोह तो बेचारी कोहरे, बादल अौर गर्द की मोहताज होती है;
1 hr
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S.p. Singh
वाह मौज करिए।
1 hr
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