Monday, January 12, 2015

ढूंढती फिरती हूँ तुम्हें मैं हर उस जगह कदमों के निशान जहाँ तुम हो छोड़ गए ।

कलम से____
ढूंढती फिरती हूँ तुम्हें मैं हर उस जगह
कदमों के निशान जहाँ तुम हो छोड़ गए ।
रास आती नहीं है अब यह जिन्दगी
मुश्किलें हैं बहुत कैसे करूँ मैं बंदगी ।
आवाज दो बुला लो मुझे हो तुम जहां
पल एक न लूँगी आ जाऊँगी मैं वहाँ ।
मुझे बुला कर तुम न जाने कहाँ खो गए
इस जहाँ में हमको तन्हा क्यों कर गए ।
मिलोगे सुनाएंगे हाले दिल अपना हम
अब न छोडेंगे सनम खाई है ये कसम ।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
— with Puneet Chowdhary.
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  • Ram Saran Singh " इस जहाँ में हमको तन्हा क्यों कर गए " । इसमें मिलने, पा लेने की प्यास झलक रही है । साथ व्यथा का उलाहना भी । मैं तो कहना चाहूँगा, " मेहरबाँ हो के जब चाहो बुला लो मुझको, मैं गया वक़्त नहीं कि आ न सकूँ " । बहुत सुंदर अभिव्यक्ति । धन्यवाद ।
  • Dinesh Singh बहुत ही उम्दा रचना-
  • Neelesh B Sokey Beautiful वाह

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