कलम से____
मैं तो भूल गया
सब रीति रिवाज
अपने
पराए
पूजा के पाठ
वो
मंदिर में जाना
फिर सिर छुकाना
पत्थर की प्रतिमा
पर पुष्प चढ़ाना
पुजारी से प्रसाद लेना
नहीं आ रहा है याद
मुझे अपना ही फसाना
क्या कहूँ क्या न कहूँ
देख तुझे चाहे
यह दिल बेगाना
चलो चलके
बैठें कहीं
तुम मुसकुराना
शायद तब निकले
इस बेचैन दिल से
कोई तराना........
सब रीति रिवाज
अपने
पराए
पूजा के पाठ
वो
मंदिर में जाना
फिर सिर छुकाना
पत्थर की प्रतिमा
पर पुष्प चढ़ाना
पुजारी से प्रसाद लेना
नहीं आ रहा है याद
मुझे अपना ही फसाना
क्या कहूँ क्या न कहूँ
देख तुझे चाहे
यह दिल बेगाना
चलो चलके
बैठें कहीं
तुम मुसकुराना
शायद तब निकले
इस बेचैन दिल से
कोई तराना........
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
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