Sunday, December 14, 2014

शाख से बिछड़ते वक पत्ते ने शाख से यह कहा

कलम से_____
शाख से बिछड़ते वक
पत्ते ने शाख से यह कहा
बिछड़ने का गम है बहुत मुझे
खुशी इतनी भर है
उम्र पूरी होने पर
ही जुदा हुआ हूँ
काम जो थे मेरे
करके मैं जिया हूँ
जा रहा हूँ तब भी
मिला भरपूर प्यार है
प्यार से ही मैं अलग हुआ हूँ
छाँव में तेरे तले
सूख कर सेवा करूँगा
जीवनदान था दिया जिसने
ऋण चुकाने का है मुझे
मौका है एक दिया
सूख जाऊँगा खाद बन
रह जाऊँगा यहीं
जाऊँगा मैं अब यहाँ से और न कहीं
स्थान है यह मेरा
जग में दूजी है न
कोई मेरे लिए सरजमीं
ए हवा के झोंके रहने दो
मुझे तुम यहीं
हो सके तो ड़ाल दो
थोड़ी सी जमीं
धूलधूसरित हो जाऊँगा
था जहाँ का वहीं का
सदा के लिए रह जाऊँगा
सो जाऊँगा मैं यहीं
छोड़ी नहीं जाती है मुझसे
यह माँ सरीखी, सरजमीं ......
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Puneet Chowdhary.
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