Sunday, December 14, 2014

घुटने पर बैठकर भेंट दे रहा था गुलाब का पुष्प सुदंर सी बालिका को

कलम से____
निगाह मेरी पडी
नवयुवक एक रहा होगा
कोई अच्चीस पच्चीस के
आसपास
घुटने पर बैठकर
भेंट दे रहा था
गुलाब का पुष्प
सुदंर सी बालिका को
कहते हुए उसे सुना
बहुत चढाए हैं फूल
पत्थर के भगवान पर
न वो हँसा न वो रोया
इसलिए प्रिये
स्वीकार करो या ठुकराओ
है यह अधिकार तुम्हें
सुनकर बात स्पष्ट
स्वीकार किया पुष्प
सहृदय बालिका ने
धन्यवाद अलग से दिया
यह कहकर "थैंकयू"।
पुष्प भी मुस्कुरा पड़ा
अपनी किस्मत पर....
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Puneet Chowdhary.
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