Sunday, December 7, 2014

सुबह अंधेरे कुछ ही

कलम से____
सुबह अंधेरे कुछ ही
लोग आते हैं,
जो आदत से 
मजबूर हैं,
जल्दी सो जाते हैं,
भोर होते ही उठ जाते हैं।
सैर पर आनेवाले
कुछ कम हो गये हैं
सरदी के इस मौसम में
अक्सर यह होता है
आलस पकड़ लेता है
डाक्टर भी एक्सपोजर से
बचने की सलाह देता है।
रिटायर्ड बुजुर्गों ने भी
थोड़ा बदलाव किया है
धूप सुहानी सी जब
निकल आती है
अखबार मैगजीन साथ
लेकर आते हैं
बैंच आमने सामने लगा कर
धूप का मजा ले
गपशप करते हैं
आज तो रविवार है
और भी मस्ती का दिन
बैंक भीं है बंद
दफ्तर भीं हैं बंद
राजनीति गरम है
चर्चा उसी की होती है
इस सब के बीच
भारत माँ की सुदंर
तस्वीर उभरती है
अच्छे अच्छे प्रोग्राम
बनते हैं बिगड़ते हैं
राजनीतिक नेता
गाली भी खाते हैं
होते हैं बेशरम
बार बार चर्चा में
आते हैं बजूद अपना
वह भी बचाते रहते हैं
विचारों का आदान प्रदान
होता रहता है
सूरज जब अच्छा खासी
ऊपर आ जाता है
सिर से गर्म टोपी उतार
घर चलने की होती है।
पार्क में रौनक
दिन भर बनी रहती है।
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Puneet Chowdhary.
Like ·  · 

No comments:

Post a Comment