Sunday, December 14, 2014

लोगों में बैचेनी

कलम से____
लोगों में बैचेनी
है फिर से बढ़ती हुई
अकारण ही कुछ नहीं होता
जब कुछ है घटता
कुछ न कुछ पीछे उसके होता।
आशायें बहुत जगा दी हैं
इच्छाओं पर काबू नहीं है
ऐसे में क्या होगा
स्वर विद्रोह के फूटेंगे।
युवक जोश को काबू में रखना
काम बिकट हो जाएया
प्रगति अगर न हुई अब
विकास अब नहीं हुआ
आशायें विश्वास में परिवर्तित न हुईं
समझो भइया मुश्किल का
बड़ा पहाड़ टूटने वाला है।
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
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