Friday, September 5, 2014

न चाहिए मुझे एक मुठ्ठी आसमान

कलम से____

न चाहिए मुझे एक मुठ्ठी आसमान
औ' न चाहिए सारा जहाँ
बस चाहत है इतनी सी
मिले दो गज़ ज़मीन
अपने मुल्क में
अपनों से घिरी हुई.......

//surendrapal singh//

http://spsinghamaur.blogspot.in/
 — with Puneet Chowdhary.
Photo: कलम से____

न चाहिए मुझे एक मुठ्ठी आसमान
औ' न चाहिए सारा जहाँ
बस चाहत है इतनी सी
मिले दो गज़ ज़मीन
अपने मुल्क में
अपनों से घिरी हुई.......

//surendrapal singh//

http://spsinghamaur.blogspot.in/
  • Sanjay Joshi Great sir.....
  • Neelesh B Sokey पंक्तियाँ तो master piece हैं, photograph भी आपने match कर दिया। वाह !
  • S.p. Singh शुक्रिया।
  • Harihar Singh बहतरीन रचना।बन्दे का शुक्रिया कबूल करेंSee Translation
  • S.p. Singh मनीष धन्यवाद।
  • S.p. Singh हरिहर भाई हृदय से आभार।
  • Ram Saran Singh आपकी चंद पंक्तियों ने आख़िरी चाहत को परवान चढ़ा दिया । साथ ही मुल्क की मिट्टी से बेइंतिहा मुहब्बत का इज़हार भी है । ऐसी चीज़ें दिल को छू जाती हैं । धन्यवाद ।
  • S.p. Singh आपने मेरी भावनाओं को शब्द दिए, बहुत धन्यवाद।
  • Rajan Varma या खुदा- दो गज़ ज़मीं ही तो माँगी थी, कौन ताजमहल माँग लिया था- जो तुम परेशाँ हो गये? 
    बात ग़र दो गज़ जमीं की होती तो कोई बात न थी; परेशानी का सबब है 'अपनो से घिरी हुई'
  • Ram Saran Singh बिल्कुल सही कहा वर्माजी आपने ।
  • Harihar Singh बात तो आप तीनों की सही हैSee Translation
  • S.p. Singh "अपनों से घिरी हुई..." सारा खेल संसार में आवागमन का है। जब मानव बन आप आते हैं तब भी आसपास कम से कम अब अपने नहीं होते। होता है तो हास्पीटल का स्टाफ हाँ उसके बाद आप फिर अपनों से घिर जाते हैं। जाने के समय चार दिशा में सभाँलते हैं चार लोग। मुखाग्नि के लिए फिर सिर्फ अपने ही नज़र आते हैं। आपकी अंतिम यात्रा में भी अपने ही आ पाते हैं जो आपको अपना समझते हैं।दो गज़ ज़मीन अपनों ही से घिरी हुई न।

    ता उम्र हम इधर उधर मारे मारे फिरते हैं
    खाने पीने के जुगाड़ में परेशान रहते हैं
    कभी घर यहाँ कभी वहाँ बनाया करते हैं
    आखिरी वक्त में फिर अपने वतन की मिट्टी की याद करते हैं।
  • BN Pandey VE LOG BARE NASEEB WALE HOTE HAI JINHE ANTEEM SAANS LETE SAMAY CHAND BUNDE GANGAA JAL KI AUR SAMANE APANI HI MATRIBHUMI PER APANE JANO KAA KANDHAA MILTAA HAI...............AISE LOGO KI CHEER NIDRAA SAHI MANO ME CHEER NIDRAA KAHALAATI HAI
  • Ajay Kumar Misra राष्ट्रीय प्रेम और यथार्त भावपूर्ण मार्मिक प्रस्तुति।
    "हर हर महादेव"
    See Translation
  • S.p. Singh सभी मित्रों का हार्दिक आभार एवं अभिनन्दन।

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