Monday, September 28, 2015

शाम होते ही शाम का नशा चढ़ने है लगता



शाम होते ही शाम का नशा चढ़ने है लगता 
 इन्सान हैवान सी बातें क्यों है करने लगता
नशा बोतल में होता तो बोतल बोलती यारो
हर तरफ से आवाज कैसी आरही है मारो मारो !

बिकती है दुकान पर विलायती औ' देशी भी
चौइस है आपकी पसंद आती है आपको कौनसी
दिखने में हो जो हसीन जरूरी नहीं मजेदार ही होगी
बाज़ार में बिकती है जो ज्यादा असरदार नहीँ होगी !

कच्ची प्याज के साथ गले से उतर है जाती
लगा दी है आग बाजार में नज़र नहीं आती
सस्ता है आज के दिन मुर्गमुसल्ल खा लेना
दाल ढूँढने से भी बाजार में नज़र नहीं आती !

पीने जो बैठे हो आज छक के लो पी यारा
नहीं है पता कोई कल नसीब हो या न हो
मार महगाई की अजीब पड़ी जोर है की
खुशी जो है नसीब में आज कल हो न हो !

जो पी है मय आँखो से उसका कोई सानी नहीं है
सबको मिल जाये चाहत अपनी ऐसा नसीब नहीं है
जो भी आता है यहाँ मारा ग़म का होता है
ग़म मिटाने को बेसहारा का सहारा होता है !


©सुरेंद्रपालसिंह  2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

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